पलायन
आज के भारत में रोजगार की तलाश में पलायन आम बात हैं, चाहे वो पढ़ा लिखा अभिजात्य वर्ग का हो या अनपढ़ गरीब नागरिक | गाँव से शहर कि ओर बदस्तूर जारी हैं, ऐसे ही एक सख्स हैं, जिनका नाम बिजेन्द्र मंडल हैं, जो पश्चिम बंगाल का मुर्शिदाबाद जिले का रहने वाला हैं , बेहतर अजिवीका की तलाश में अपने गाँव इकबाल नगर से धनबाद आये| हिरापुर में बनती गगनचुंबी इमारतों में मजदुर का काम करते थे,ऐसे हा सैंकङो मजदूर धनबाद आते हैं |
बिजेन्द्र की कहानी कुछ अलग हैं, वो मांसिक रोग से पिङित हैं, परिवार की माली स्थीती अच्छी नही हैं, उनका गाँव भारत बांग्लादेश की सिमावर्ती क्षेत्र का दलदलीय इलाके में हैं , हुगली भागिरथी , की धारा किसान की घान कि फसलों को तहस नहस कर देती हैं| ऊपर से साहुकारों का कर्ज जो जिंदगी को कर्ज की दल दल में ढकेल देती हैं , मौजूदा पश्चिम बंगाल की की बिगङती स्थिती वहां के हिंदू परिवारों को बेहतरी के लिए पलायन के लिए मजबूर होना पङ रहा हैं, माँ, माटी , मानुष के नाम पर राजनिति करने वाली ममता के राज में मजदूरों की हालत दयनीय हैं|
वह दिन 25 जनवरी की हैं, जब बिजय मंडल अपने दोशतो के साथ ईट की सुलगती आग में खाना खाया, फिर घुमने के लिये निकला , तब से उसका कोई अता – पता ठिकाना नहीं हैं, उसका फोन भी पहुँच से बाहर बंद हैं, दोशतो और सगे संबंधीयों की हालत चिंताजनक हैं| मंडल कहाँ गया, अच्छे से हिंदी ना बोल पाने वाले, परिवार की बिगड़ी हालत को उनकी टुटी फुटी हिंदी सब बयान कर देती हैं, चिंता तो हैं, इस पुलिस की निष्ठुर व्यवहार की आखिर इन अकिदतमंदो को कितने दिन थाने दौड़ाये गी.
अवधेश कुमार राय