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12 Aug 2017 · 1 min read

पर्व राष्ट्रीय जब भी आते, यूँ तो सभी मनाते हैं

पर्व राष्ट्रीय जब भी आते, यूँ तो सभी मनाते हैं
पर ऐसा लगता है जैसे,केवल रीत निभाते हैं

देखा जीवन मे खुद करते, अम्ल नहीं उन बातों पर
बड़ी बड़ी जो बातें अपने, भाषण में कर जाते हैं

सीमा पर तो दुश्मन की हम , ईंट से ईंट बजा देते
बेबस पर रह जाते जब ये,घर में कहर मचाते है

देश खा रहे दीमक जैसे, जाति ,धर्म ये आरक्षण
इनका तूल बनाकर नेता, अपने वोट भुनाते हैं

भ्रष्टाचार यहां फैला है, अब लोगों की रग रग में
चपरासी से अफसर तक सब, रिश्वत की ही खाते हैं

व्यापारी भी लाभ कमाने,देश को अपने भूल गये
नकली दस्तावेज़ बनाकर,अपना टैक्स बचाते हैं

आज देश की बदहाली का एक बड़ा कारण ये भी
करें नहीं खुद हम कुछ भी बस, सबके फ़र्ज़ गिनाते हैं

हिंदू मुस्लिम सिक्ख इसाई,सब हो जायें एक ‘अर्चना’
देश प्रेम की आओ सबमें ,फिर से जोत जगाते हैं

डॉ अर्चना गुप्ता
05-08-2017

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