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5 Jun 2017 · 3 min read

“विश्व पर्यावरण दिवस”

“विश्व पर्यावरण दिवस” पर्यावरण दिवस एक अभियान है जिसकी घोषणा संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा मानव पर्यावरण के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के अवसर पर 1972 में हुई थी। हालांकि, यह अभियान सबसे पहले 5 जून 1973 को मनाया गया। यह प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है और इसका कार्यक्रम विशेषरुप से, संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित किए गए वार्षिक विषय पर आधारित होता है। यह कार्यक्रम एक शहर के द्वारा आयोजित किया जाता है, जहाँ पर्यावरण से संबंधित विषयों पर चर्चा की जाती है, जिसमें बहुत सी गतिविधियों को शामिल किया जाता है। हमारे वातावरण की सुरक्षा के लिए विश्वभर में लोगों को कुछ सकारात्मक गतिविधियाँ के लिए प्रोत्साहित और जागरुक करने के लिए यह दिन संयुक्त राष्ट्र के लिए सबसे महत्वपूर्ण दिन है। अब, यह 100 से भी अधिक देशों में लोगों तक पहुँचने के लिए बड़ा वैश्विक मंच बन गया है।इसका वार्षिक कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र के द्वारा घोषित की गई विशेष थीम या विषय पर आधारित होता है। इसे अधिक प्रभावी बनाने और वर्ष की विशेष थीम या विषय के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए विभिन्न गतिविधियों और कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। विभिन्न क्रियाएँ ; जैसे- निबंध लेखन, पैराग्राफ लेखन, भाषण, नाटक का आयोजन, सड़क रैलियाँ, प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता, कला और चित्रकला प्रतियोगिता, परेड, वाद-विवाद, आदि का आयोजन किया जाता है। लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरुकता लाने के लिए अन्य प्रकार की प्रदर्शनियों को भी आयोजित किया जाता है। यह सामान्य जनता सहित शिक्षाविदों, पर्यावरणविदों, प्रोफेसरों, वैज्ञानिकों, राजनीतिज्ञों, आदि के समूहों को आकर्षित करता है। मेजबान शहर के अलावा विश्व पर्यावरण दिवस वाले दिन, यह अन्य देशों के द्वारा वैयक्तिक रुप से अपने राज्यों, शहरों, घरों, स्कूलों, कॉलेजों, सार्वजनिक स्थलों आदि पर परेडों और सफाई गतिविधियाँ, रीसाइक्लिंग पहल, वृक्षारोपण के साथ सभी प्रकार की हरियाली वाली गतिविधियों को प्रोत्साहित करने और लोगों को इस खूबसूरत ग्रह की बुरी परिस्थितियों की ओर ध्यान देने के लिए आयोजित किया जाता है। इस दिन सार्वजनिक अवकाश नहीं होता इस प्रकार सभी स्कूल और कार्यालय खुले रहते हैं और कोई भी अवकाश नहीं लेता है। यह कार्यक्रम इस पृथ्वी की सुन्दरता को बनाए रखने के सार्थक सिद्ध हो रहा है।बढ़ती जनसंख्या वृद्धि , दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने , ऐश-ओ-आराम का दिखावटी जीवन जीने हेतु मानव तेजी से वनों को काट रहा है। वनों के कटाव से कृषि क्षेत्र की मिट्टी ढीली हो जाती है। मूसलाधार वर्षा बाढ़ का सबब बनती है और भूस्खलन भी होता है। वनों के कटते जाने से वर्षा भी समय पर नहीं होती। अतः इनके कटाव पर प्रतिबंध होना ही चाहिए। इसका एक उपाय और भी है कि वनों के काटने से पहले नए वनों की स्थापना की जाए। खाली स्थानों पर वृक्ष लगाए जाएँ और जन सहयोग के आधार पर समय-समय पर वन महोत्सव मनाए जाएँ।पर्यावरण को बनाए रखने के लिए वन संरक्षण की अनेक विधियाँ निर्धारित की गई हैं। इनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं- भारतवर्ष में कुल वन क्षेत्रफल के एक-तिहाई भाग में ऊँचे तथा विशालकाय वृक्ष नहीं है। अतः इन क्षेत्रों में इनका अधिक संख्या में रोपण करके वन आवरण की सघनता को बढ़ाया जा सकता है। साथ ही अयोग्य भूमि में वृक्ष लगाकर वन आवरण में वृद्धि की जा सकती है। अम्लीय, क्षारीय, जलाक्रांत मृदा में सुधार करके वृक्षारोपण में पहल की जा सकती है और मृदा के वनस्पति आवरण में वृद्धि करने के लिए उपयुक्त वर्षों व पादपों की उगाना चाहिए।मनुष्य जन्म से ही प्रकृति की गोद में अपना विकास व जीवन व्यतीत करता रहा है। वन और धरती पर चारों तरफ फैली हरियाली मानव के जीवन को न केवल प्रफुल्लित करती है, अपितु उसे सुख-समद्धि से संपन्न करके उसे स्वास्थ्य भी प्रदान करती है। वनों का संरक्षण किया ही जाना चाहिए, इसी में पूरी मानव जाति का हित निहित है। वन संरक्षण के लिए सरकारी स्तर पर किए जा रहे कार्यों एवं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जरूरी है कि देश के आम नागरिक भी आगे बढ़कर इसमें अपनी अहम् भूमिका का निर्वहन करें, जिससे हमारी आने वाली संततियाँ शुद्ध वातावरण में खुशहाल जीवन व्यतीत कर सकें। “वृक्ष लगाओ पर्यावरण बचाओ” डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी (मो.-9839664017)

Language: Hindi
Tag: लेख
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