Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
14 Jul 2021 · 3 min read

परोपकार में प्रचार

परोपकार में प्रचार

अधिकतर लोगों में परोपकार के बाद आत्म-प्रचार का जुनून सवार होता है। यह जुनून हमें आत्म-मुग्धता की ओर ले जाता है। इस तरह हमारी यह आत्म-मुग्धता लगातार बढ़ती जाती है। हम परोपकार कर आत्म-प्रचार के जरिए आत्म-मुग्ध होते रहते हैं और यह भ्रम पाल लेते हैं कि हम कोई बहुत बड़ा काम कर रहे हैं। इस तरह की समाज सेवा अंतत: हमारा अहित ही करती है। ऐसी समाज सेवा का दुखद पहलू यह है कि यह हमारे अंदर एक अजीब किस्म का अहंकार भी पैदा करती है। सवाल यह है कि क्या अहंकार से ग्रसित इंसान सच्ची समाज सेवा कर सकता है?
जब हम परोपकार के प्रचार पर अपना ध्यान केंद्रित करने लगते हैं, तो समाज सेवा का भाव पीछे हो जाता है और प्रचार का भाव मुख्य हो जाता है। इस उपक्रम से हमें खुशी तो मिलती है, पर यह सच्ची खुशी नहीं होती, क्योंकि इसमें प्रचार की खुशी भी शामिल होती है। धीरे-धीरे हम केवल प्रचार की खुशी हासिल करने का प्रयास करने लगते हैं। इस तरह, परोपकार की भावना और उसकी खुशी पीछे छूट जाती है। दरअसल, परोपकार में केवल त्याग की भावना होनी चाहिए। परोपकार के बहाने दूसरे से अपना स्वार्थ साधने की कोशिश अंतत: हमें दुख ही प्रदान करती है। इसलिए परोपकार के बदले में दूसरे से कुछ प्राप्त करने की अपेक्षा हमें कभी नहीं करनी चाहिए। नि:स्वार्थ सेवा का दूसरा नाम ही परोपकार है।

परोपकार एक ऐसा शब्द है जिसका अर्थ शायद ही कोई न जानता हो, यह एक ऐसी भावना है जिसका विकास बचपन से ही किया जाना चाहिए। हम सबने कभी न कभी किसी की मदद जरुर की होगी और उसके बाद हमे बड़ा की गर्व का अनुभव हुआ होगा, बस इसी को परोपकार कहते हैं। परोपकार के कई रूप हैं, चाहे यह आप किसी मनुष्य के लिये करें या किसी जीव के लिये।

आज-कल लोग अधिक व्यस्त रहने लगे हैं और उनके पास अपने लिये समय नहीं होता ऐसे में वे दूसरों की मदद कैसे कर पाएंगे। ऐसे में यह आवश्यक है की परोपकार को अपनी आदत बना लें इससे आप खुद तो लाभान्वित होंगे ही अपितु आप दूसरों को भी करेंगे। राह चलते किसी बुजुर्ग की मदद करदें तो कभी किसी दिव्यांग को कंधा देदें।यकीन मानिए कर के अच्छा लगता है, जब इसके लिये अलग से समय निकालने की बात की जाये तो शयद यह कठिन लगे। आज कल के दौर में लोग दूसरों से सहायता लेने से अच्छा अपने फोन से ही सारा काम कर लेते हैं परन्तु उनका क्या जिनके पास या तो फोन नहीं है और है भी तो चलाना नहीं आता। इसी लिये परोपकारी बनें और सबकी यथा संभव मदद अवश्य करें।

परोपकार की बातें हमारे धर्म ग्रंथों में भी लिखी हुई हैं और यही मानवता का असल अर्थ है। दुनिया में भगवन किसी को गरीब तो किसी को अमीर क्यों बनाते हैं? वो इस लिये ताकि जिसके पास धन है, वो निर्धन की मदद करे। और शायद इसी वजह से वे आपको धन देते भी हैं, ताकि आपकी परीक्षा ले सकें। जरुरी नहीं की यह केवल धन हो, कई बार आपके पास दूसरों की अपेक्षा अधिक बल होता है तो कभी अधिक बुद्धि। किसी भी प्रकार से दूसरों की मदद करने को परोपकार कहते हैं और यही असल मायनों में मानव जीवन का उद्देश होता है। हम सब इस धरती पर शायद एक दुसरे की मदद करने ही आये हैं।कई बार हमारे सामने सड़क दुर्घटनाएं हो जाती हैं और ऐसे में मानवता के नाते हमें उस व्यक्ति की सहायता करनी चाहिए। किसी भी व्यक्ति को सबकी निस्वार्थ मदद करनी चाहिए और फल की चिंता न करते हुए अपना कर्म करते रहना चाहिए।

परोपकार से बढ़ के कुछ नहीं है और हमे दूसरों को भी प्रेरित करना चाहिए की वे बढ़-चढ़ कर दूसरों की मदद करें। आप चाहें तो अनाथ आश्रम जा के वहां के बच्चों को शिक्षा दे सकते हैं या अपनी तनख्वा का कुछ हिस्सा गरीबों में बाँट सकते हैं। परोपकार अथाह होता है और इसका कोई अंत नहीं है इस लिये यह न सोचें की केवल पैसे से ही आप किसी की मदद कर सकते हैं। बच्चों में शुरू से यह अदत विकिसित करनी चाहिए। बच्चों को विनम्र बनायें जिससे परोपकार की भावना स्वतः उनमें आये। एक विनम्र व्यक्ति अपने जीवन में बहुत आगे जाता है और मानवता को समाज में जीवित रखता है।

आभा सिंह लखनऊ उत्तर प्रदेश

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 2 Comments · 340 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
अनजान लड़का
अनजान लड़का
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
शब्द उनके बहुत नुकीले हैं
शब्द उनके बहुत नुकीले हैं
Dr Archana Gupta
विजय या मन की हार
विजय या मन की हार
Satish Srijan
दायरे से बाहर (आज़ाद गज़लें)
दायरे से बाहर (आज़ाद गज़लें)
AJAY PRASAD
कम्प्यूटर ज्ञान :- नयी तकनीक- पावर बी आई
कम्प्यूटर ज्ञान :- नयी तकनीक- पावर बी आई
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
इसमें कोई दो राय नहीं है
इसमें कोई दो राय नहीं है
Dr fauzia Naseem shad
आकाश
आकाश
Dr. Kishan tandon kranti
झूठा फिरते बहुत हैं,बिन ढूंढे मिल जाय।
झूठा फिरते बहुत हैं,बिन ढूंढे मिल जाय।
Vijay kumar Pandey
सुनहरे सपने
सुनहरे सपने
Shekhar Chandra Mitra
वृक्षों के उपकार....
वृक्षों के उपकार....
डॉ.सीमा अग्रवाल
रमेशराज के शृंगाररस के दोहे
रमेशराज के शृंगाररस के दोहे
कवि रमेशराज
सामाजिक मुद्दों पर आपकी पीड़ा में वृद्धि हुई है, सोशल मीडिया
सामाजिक मुद्दों पर आपकी पीड़ा में वृद्धि हुई है, सोशल मीडिया
Sanjay ' शून्य'
■ सोचो, विचारो और फिर निष्कर्ष निकालो। हो सकता है अपनी मूर्ख
■ सोचो, विचारो और फिर निष्कर्ष निकालो। हो सकता है अपनी मूर्ख
*Author प्रणय प्रभात*
Dr Arun Kumar shastri
Dr Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
रिशते ना खास होते हैं
रिशते ना खास होते हैं
Dhriti Mishra
माँ में दोस्त मिल जाती है बिना ढूंढे ही
माँ में दोस्त मिल जाती है बिना ढूंढे ही
ruby kumari
दीपावली
दीपावली
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
जीवन मार्ग आसान है...!!!!
जीवन मार्ग आसान है...!!!!
Jyoti Khari
बदनसीब लाइका ( अंतरिक्ष पर भेजी जाने वाला पशु )
बदनसीब लाइका ( अंतरिक्ष पर भेजी जाने वाला पशु )
ओनिका सेतिया 'अनु '
नेमत, इबादत, मोहब्बत बेशुमार दे चुके हैं
नेमत, इबादत, मोहब्बत बेशुमार दे चुके हैं
हरवंश हृदय
23/184.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/184.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
आदमी हैं जी
आदमी हैं जी
Neeraj Agarwal
स्थितिप्रज्ञ चिंतन
स्थितिप्रज्ञ चिंतन
Shyam Sundar Subramanian
वो तो शहर से आए थे
वो तो शहर से आए थे
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
तुम मेरी
तुम मेरी
हिमांशु Kulshrestha
दवा दारू में उनने, जमकर भ्रष्टाचार किया
दवा दारू में उनने, जमकर भ्रष्टाचार किया
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
फिर जनता की आवाज बना
फिर जनता की आवाज बना
vishnushankartripathi7
आज का चिंतन
आज का चिंतन
निशांत 'शीलराज'
*लक्ष्य (कुंडलिया)*
*लक्ष्य (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
फ़र्ज़ ...
फ़र्ज़ ...
Shaily
Loading...