Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
18 Jun 2017 · 4 min read

“परिवार का आधार स्तंभ पिता”

“परिवार का आधार स्तंभ पिता”
**********************
माता-पिता यानि जन्मदाता। जिस पिता ने संस्कार के बीज बोकर ,नैतिकता की खाद डालकर अपने उपवन की पौध को लहू देकर सींचा आज उसे इस भौतिकवादी युग ने मान-सम्मान देने और याद करने के लिए उत्सव स्वरूप मनाये जाने वाले इस “पितृ – दिवस” का मोहताज़ बना दिया है। माता के वात्सल्य व समर्पण की गाथा से साहित्य भरा है पर खून -पसीना बहाने वाला बागवान तुल्य पिता यहाँ भी असहाय ही दृष्टिगोचर होता है। सोचा.. आज उस श्रद्धेय पिता के सम्मान में ऐसा कुछ लिखूँ कि उसकी छत्रछाया में गुज़ारे हरेक अनमोल पल के मोती को मन के उद्गारों से भरी सीप से निकाल कर आपके साथ साझा कर सकूँ। बेटी हूँ, श्रवण कुमार तो नहीं बन पाई लेकिन पिता के असीम दुलार , खुशनुमा परवरिश, बेहतरीन शिक्षा, अनूठे मूल्यवान संस्कारों को पाकर आज जीवन के जिस मुकाम को हासिल किया है उस पर फ़क्र ज़रूर कर सकती हूँ।बचपन में मुँह से निकली हर बात को पूरा करके उन्होंने मुझे थोड़ा ज़िद्दी ज़रूर बना दिया था पर उत्तरदायित्व ,कर्त्तव्यपरायणता, अनुशासन, नैतिक मूल्य, स्वावलंबन ,स्वाभिमान(खुद्दारी) और ज़िम्मेदारी का पाठ पढ़ा कर उन्होंने मुझे जीवन की अमूल्य निधि प्रदान की थी। आज बड़ी से बड़ी मुश्किल का साहस पूर्वक हँसते हुए सामना करना और धैर्य पूर्वक हर कदम उठाना पिता की अतुलनीय देन है। याद है आज भी स्कूल की नर्सरी कक्षा को वो दिन जब कोई छात्रा मेरे जूते चुरा कर ले गई थी और मुझे नंगे पैर रोते हुए घर आना पड़ा था। जब मेरी आँखों से मोटे- मोटे मोती गिरते देखे तो अपनी ममता का गला घोंट कर जिम्मेदारी का पहला पाठ पढ़ाते हुए सहज भाव से बोले–” क्यों रोती है ?गलती की है तो सज़ा भुगतनी ही पड़ेगी। वो कितनी होशियार लड़की थी जो अपने जूतों के साथ-साथ तेरे जूते भी ले गई और तू कितनी मूर्ख है जो अपने जूतों को सँभाल कर रखने की बजाय उनके खोने पर आँसू बहा रही है।आँसू बुझदिलों की निशानी है। आज के बाद तू हर दिन घर से बाहर नंगे पैर निकलेगी ताकि तुझे अपनी गलती का अहसास हो सके। जिस दिन अपनी चीजों को सँभाल कर रखना सीख ले उस दिन बता देना ..नया जूता दिला दूँगा।” उनके नेतृत्व में मिला मार्ग-प्रदर्शन आज जीवन के हर कदम पर उनकी याद दिलाता है। नाज़-नखरे में गुज़ारी ज़िंदगी ने कभी रसोई के दरवाज़े तक नहीं जाने दिया। जब पापा देखते कि मम्मी किसी कारणवश दो -चार दिन के लिए घर से बाहर गई हैं तब शुरू होती थी उनकी पाकशाला। किचन में बैठकर कढ़ी की पोली पकोड़ी उतार कर रोटी बेलना -सेंकना सिखाते। आज परतदार पराठे बनाते समय पापा की बहुत याद आती है। सुबह चार बजे उठा कर हमें गणित पढ़ाना, ४० तक के पहाड़े बुलवाना , “जो जागत है सो पावत है जो सोवत है सो खोवत है” कहते हुए रात को अपने हाथ से हर बच्चे को ग़ज़क,अखरोट,बादाम,तिलगोजे, काजू-किशमिश, खजूर खिलाना आज भी भुलाए नहीं भूल पाती हूँ। कौन कहता है पिता सिर्फ़ कमाकर हमारी ज़िंदगी सँवारते हैं ? मेरे पापा ने तो बेटों की ही नहीं बेटियों की परवरिश भी माँ बन कर की है। माता-पिता जीवन के वो स्तंभ हैं जिन पर वात्सल्य , अात्मीयता, स्नेह,आकाश के समान विशाल हृदय, सागर की लहरों सी निश्छल उमंग , समर्पण व सहयोग से बनी मजबूत ईंटों की इमारत टिकी है। इस आलीशान भवन में रहने वाले हम बंद खिड़की के झरोखों से झांक कर कभी यह देखने की कोशिश नहीं करते हैं कि कभी नरम, गरम ,कभी गंभीर, कभी हँसमुख, मन ही मन स्थिति को समझ कर पारिवारिक संकटों से जूझने वाले पिता कितना सहन करते होंगे ..।शौक से पाले जाने वाले पशु-पक्षी से भी लगाव हो जाता है । उनकी देखभाल के लिए भी नौकर व सुखद साधनों की व्यवस्था की जाती है फिर ये तो हमारे माता-पिता हैं जिन्होंने अपने जीवन का हर हंसीन लम्हा हमारी खुशियों पर न्यौछावर कर हमें बेहतरीन ज़िंदगी दी फिर आज आत्मनिर्भर होते ही हम उनसे विमुख क्यों होने लगते हैं? हम क्यों भूल जाते हैं कि जिन बाहों ने बचपन में झूला झुलाया, नन्हीं अँगुली थाम कर चलना सिखाया आज वे हमारी बाहों का आसरा ढ़ूँढ़ रही हैं । जिन हाथों ने एक- एक रोटी का कौर मुँह में खिलाया आज वे हमारे साथ रोटी का स्वाद लेना चाहते हैं । जो माँ -बाप चार औलाद का पेट हँसकर भरते हैं उन्हें वो चार औलाद मिल कर पालने की जगह बाँट देती हैं या फिर उनसे छुटकारा पाने के लिए वृद्धाश्रम तक का रास्ता तय कर लेती है क्यों??कभी-कभी लगता है..कहीं न कहीं दोष माता-पिता का तो नहीं, जिन्होंने बेटा-बेटी की परवरिश समान करके भी बेटे को अपनी धरोहर समझने की भूल की है। जो भी हो बूढ़ा बागवान बेसब्री से अपनी लगाई पौध को फलते-फूलते देखना चाहता है। दो मीठे फल रूपी बोल उसकी सारी पीड़ा हर लेते हैं। इन बूढ़ी आँखों से इनके सपने मत छीनिए। हो सके तो दो लम्हे इनके साथ बिता कर इस इमारत की नींव को ढहने से बचा लीजिए।
डॉ.रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी(मो-9839664017)

Language: Hindi
Tag: लेख
5 Likes · 6 Comments · 4010 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डॉ. रजनी अग्रवाल 'वाग्देवी रत्ना'
View all
You may also like:
* तपन *
* तपन *
DR ARUN KUMAR SHASTRI
*देहातों में हैं सजग, मतदाता भरपूर (कुंडलिया)*
*देहातों में हैं सजग, मतदाता भरपूर (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
छोटी सी बात
छोटी सी बात
Kanchan Khanna
एहसान
एहसान
Paras Nath Jha
शुभ प्रभात मित्रो !
शुभ प्रभात मित्रो !
Mahesh Jain 'Jyoti'
पल बुरे अच्छे गुजारे तो सभी जाएंगे
पल बुरे अच्छे गुजारे तो सभी जाएंगे
Dr Archana Gupta
लहजा
लहजा
Naushaba Suriya
💐उन्होंने हाथ बढ़ाया ही नहीं कभी💐
💐उन्होंने हाथ बढ़ाया ही नहीं कभी💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
हिन्दी दोहा -जगत
हिन्दी दोहा -जगत
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
फुदक फुदक कर ऐ गौरैया
फुदक फुदक कर ऐ गौरैया
Rita Singh
तुम्हारी आँखें...।
तुम्हारी आँखें...।
Awadhesh Kumar Singh
रही प्रतीक्षारत यशोधरा
रही प्रतीक्षारत यशोधरा
Shweta Soni
बचपन के पल
बचपन के पल
Soni Gupta
#ग़ज़ल-
#ग़ज़ल-
*Author प्रणय प्रभात*
हाँ, क्या नहीं किया इसके लिए मैंने
हाँ, क्या नहीं किया इसके लिए मैंने
gurudeenverma198
आप और हम जीवन के सच................एक सोच
आप और हम जीवन के सच................एक सोच
Neeraj Agarwal
आसमान को उड़ने चले,
आसमान को उड़ने चले,
Buddha Prakash
यार ब - नाम - अय्यार
यार ब - नाम - अय्यार
Ramswaroop Dinkar
मर्दों को भी इस दुनिया में दर्द तो होता है
मर्दों को भी इस दुनिया में दर्द तो होता है
Artist Sudhir Singh (सुधीरा)
शीर्षक – वह दूब सी
शीर्षक – वह दूब सी
Manju sagar
"शब्द"
Dr. Kishan tandon kranti
मेला झ्क आस दिलों का ✍️✍️
मेला झ्क आस दिलों का ✍️✍️
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
मुद्रा नियमित शिक्षण
मुद्रा नियमित शिक्षण
AJAY AMITABH SUMAN
प्यार हो जाय तो तकदीर बना देता है।
प्यार हो जाय तो तकदीर बना देता है।
Satish Srijan
दिये को रोशन बनाने में रात लग गई
दिये को रोशन बनाने में रात लग गई
कवि दीपक बवेजा
लाल रंग मेरे खून का,तेरे वंश में बहता है
लाल रंग मेरे खून का,तेरे वंश में बहता है
Pramila sultan
मनुष्यता कोमा में
मनुष्यता कोमा में
Dr. Pradeep Kumar Sharma
मेरे गली मुहल्ले में आने लगे हो #गजल
मेरे गली मुहल्ले में आने लगे हो #गजल
Ravi singh bharati
हे मृत्यु तैयार यदि तू आने को प्रसन्न मुख आ द्वार खुला है,
हे मृत्यु तैयार यदि तू आने को प्रसन्न मुख आ द्वार खुला है,
Vishal babu (vishu)
पुण्यात्मा के हाथ भी, हो जाते हैं पाप।
पुण्यात्मा के हाथ भी, हो जाते हैं पाप।
डॉ.सीमा अग्रवाल
Loading...