परिंदे प्यार के
प्यार के परिंदे
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प्यार के परिंदे भी
आधुनिक हो गये हैं,
प्यार के अहसास सारे खो रहे हैं
प्यार में अब घाव गहरे मिल रहे है,
प्यार में अब कहाँ वो रूमानियत
भला गहरी कहाँ,
प्यार के आजाद परिंदे
घाव गहरे दे रहे।
प्यार के अहसास जो
महसूस थे होते कभी,
अब परिंदे तो उसे
दिन रात घायल कर रहे।
अब तो भौरों ने खूश्बू लेना छोड़कर
फूल को झकझोर करके
नोंचने ही हैं लगे।
ये परिंदे प्यार के
काबिल नहीं अब रह गए,
जिस्म छलनी करके देखो
छोड़कर अब घर गये।
◆ सुधीर श्रीवास्तव