Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Jun 2021 · 2 min read

परम्पराओं की बेड़ियां

नमन मंच
शीर्षक- परम्पराओं की बेड़ियां

क्यों रखना चाहते हो मुझे ताउम्र
यूँ ही परंपराओं की बेड़ियों में
कभी देखा तो होता मेरे मन के भाव को
क्या चाहती हूँ मैं चलना चाहा मैंने भी स्वच्छंद
मेरी भी इच्छाएं हैं कुछ चाह हैं मेरी भी
पुरानी पसरम्पराओं में कब तक जकड़ी रहूँगी मैं।
क्या हैं मेरे प्रश्नों का उत्तर किसी के पास..?

मैं स्वयं में पूर्ण हूँ क्योंकि तुम सब की जन्म दात्री हूँ
प्रकृति में मुझे सम्मान दिया हैं रचयिता का और ये क्या
तुमने मुझे एक वस्तु मात्र ही समझ इस्तेमाल किया
अपनी शीतल छाँव प्रेम की देकर पालती रही हूँ तुम्हें
अपना वजूद खो तुमको पहचान दिलाती रही मैं
तो क्यों मुझे इन बेड़ियों में रखना चाहते हैं सब अब भी।
क्या हैं मेरे प्रश्नों का उत्तर किसी के पास..?

हर बात पर मुझे क्यों नीचा दिखाने की होती कोशिश
मुझे ये बेटी होने की जो बेड़ियाँ डाली गई हैं अब
मैं नहीं रह सकती हूँ तुम्हारी इन झूठी परंपराओं में
नहीं चाहिए साथ भी किसी का इनको तोड़ने में
आज सक्षम हूँ मैं स्वयं ही रूढ़िवाद से निकलने को
अब तक नजर अंदाज हुई मैं पर अब नही बस नहीं
क्या हैं मेरे प्रश्नों का उत्तर किसी के पास..?

मौका तो दो क्या नहीं कर सकती हम बेटियां
आज भी घर की चौखट की रौनक होती हैं बेटियां
शिक्षित होकर कहाँ तक नहीं पहुँच सकती बेटियां
अपना ही नही आपका नाम भी कर सकती हैं बेटियां
उन्मुक्त उड़ने दो उसको भी खुले अंतरिक्ष में
फैलने दो उनके पंख भी इस सुंदर से संसार चमन में।
क्या हैं मेरे प्रश्नों का उत्तर किसी के पास…?

हौंसला दो इनको भी उड़ान भरने का जरा
बेटे के समान ही जन्म मिलता हैं ये सोचना जरा
खुद तोड़े ये बंधन बेटी तो तुम ही कर दो स्वच्छंद जरा
टूट न जाये उसका हौंसला आगे बढ़कर आगे आओ जरा
आज शिक्षित हो बेटी खोलो स्वयं इन बेड़ियों को जरा
मैं भी आज साथ खड़ी हूँ तुम बंधन खोलो तो जरा।
क्या हैं मेरे प्रश्नों का उत्तर किसी के पास..?

डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद
घोषणा:स्वरचित रचना

Language: Hindi
1 Like · 191 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Dr Manju Saini
View all
You may also like:
World Book Day
World Book Day
Tushar Jagawat
💐प्रेम कौतुक-394💐
💐प्रेम कौतुक-394💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
*बाल गीत (मेरा मन)*
*बाल गीत (मेरा मन)*
Rituraj shivem verma
कुंडलिया - गौरैया
कुंडलिया - गौरैया
sushil sarna
वृक्ष बड़े उपकारी होते हैं,
वृक्ष बड़े उपकारी होते हैं,
अनूप अम्बर
"मेरी कलम से"
Dr. Kishan tandon kranti
ख़ामोशी
ख़ामोशी
कवि अनिल कुमार पँचोली
जब मैसेज और काॅल से जी भर जाता है ,
जब मैसेज और काॅल से जी भर जाता है ,
Manoj Mahato
*अज्ञानी की कलम*
*अज्ञानी की कलम*
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
दरख़्त और व्यक्तित्व
दरख़्त और व्यक्तित्व
Dr Parveen Thakur
डॉ अरुण कुमार शास्त्री 👌💐👌
डॉ अरुण कुमार शास्त्री 👌💐👌
DR ARUN KUMAR SHASTRI
निर्झरिणी है काव्य की, झर झर बहती जाय
निर्झरिणी है काव्य की, झर झर बहती जाय
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
तुझे कैसे बताऊं तू कितना खाश है मेरे लिए
तुझे कैसे बताऊं तू कितना खाश है मेरे लिए
yuvraj gautam
17रिश्तें
17रिश्तें
Dr Shweta sood
साहित्य - संसार
साहित्य - संसार
Shivkumar Bilagrami
मेरे दिल ❤️ में जितने कोने है,
मेरे दिल ❤️ में जितने कोने है,
शिव प्रताप लोधी
■ त्रिवेणी धाम : हरि और हर का मिलन स्थल
■ त्रिवेणी धाम : हरि और हर का मिलन स्थल
*Author प्रणय प्रभात*
*जल्दी उठना सीखो (बाल कविता)*
*जल्दी उठना सीखो (बाल कविता)*
Ravi Prakash
माथे पर दुपट्टा लबों पे मुस्कान रखती है
माथे पर दुपट्टा लबों पे मुस्कान रखती है
Keshav kishor Kumar
मदिरा वह धीमा जहर है जो केवल सेवन करने वाले को ही नहीं बल्कि
मदिरा वह धीमा जहर है जो केवल सेवन करने वाले को ही नहीं बल्कि
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
मै भटकता ही रहा दश्त ए शनासाई में
मै भटकता ही रहा दश्त ए शनासाई में
Anis Shah
जीवन मार्ग आसान है...!!!!
जीवन मार्ग आसान है...!!!!
Jyoti Khari
दोहा- मीन-मेख
दोहा- मीन-मेख
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
‌‌‍ॠतुराज बसंत
‌‌‍ॠतुराज बसंत
Rahul Singh
कुछ तो उन्होंने भी कहा होगा
कुछ तो उन्होंने भी कहा होगा
पूर्वार्थ
2811. *पूर्णिका*
2811. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
*** सागर की लहरें....! ***
*** सागर की लहरें....! ***
VEDANTA PATEL
आज के बच्चों की बदलती दुनिया
आज के बच्चों की बदलती दुनिया
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
कोई चोर है...
कोई चोर है...
Srishty Bansal
कोई पत्ता कब खुशी से अपनी पेड़ से अलग हुआ है
कोई पत्ता कब खुशी से अपनी पेड़ से अलग हुआ है
कवि दीपक बवेजा
Loading...