परधानी के आरक्षण
मुर्ग मुसल्लम और बोका लिट्टी संग हल हल मदिरा छलकत बा।
सामान्य ,अनुसूचित और ओबीसी सोच के बायीं अंखिया फरकत बा।
अफड्डरी अब चरम प बा अपने ,आरक्षण के लेके बकझक बा।
एहरो खाता ओहरो खाता प्रत्याशी के गफलत में डलले बा,
सारी होशियारी फेल हो गईल, का गोमसा बुड़बक बा।
-सिद्धार्थ पांडेय