परदेशी के नाम चिट्ठी
भोजपुरी लोकगीत
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रोई- रोई फुलवाँ लिखलस चिट्ठी, सुनलऽ मोर सजनवाँ।
अबकी जे न तू अइबऽ तऽ, तेजब हमहुं परनवाँ।
फिर ना हमके देख तू पईबऽ, केतनो रोअबऽ – गईब तू,
चाहे कवनो सउतीन लईबऽ, हम सा प्रीत ना पईब तू।
बिना प्रीत के कठिन ई जीवन, जीअबऽ कइसे सजनवाँ?
अबकी जो न तू अइबऽ तऽ, तेजब हमहुं परनवाँ
नेह के बन्धन में तू बधलऽ, कहलऽ संग ना छोड़ब।
एको पल ना रहब दूर हम, दिल ना कबहूँ तोड़ब।
जब से लइलऽ दूर रहेलऽ, बोलऽ कवने कारनवाँ।
अबकी जो न तू अइबऽ तऽ, तेजब हमहुं परनवाँ।।
छोटकी ननदी ताना मारे, देवरा मुँह चिढ़ावत बा।
कऊआँ हकनी नाम धराइल, सब मिल आंख दिखावत बा।
पाती बाची अनदेखा करबऽ, हमका अब जे सजनवाँ।
अबकी जो न तू अइबऽ तऽ, तेजब हमहुं परनवाँ।।
सखी – सहेलियन के हमरा जी, घर – वर सुग्घर मिलल।
साथ रहे सब अपने सजन के, रूप बा खीलल – खीलल।
सुख के सूरज अस्त भइल बा, सचिन जी कवने कारनवाँ।
अबकी जो न तू अइबऽ तऽ, तेजब हमहुं परनवाँ।।
©® पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
ई भोजपुरी रचना ओह तमाम स्नेही साथी सङ्गाती ला बा , जे अपने तिरिया से दूर (दू पइसा कमाये बदे) परदेश मे जाके रहेला लोग आ, धीरे- धीरे परदेश के ही होके रहि जाला लोग।अपनी मेहरिया के सुध तकले नाहीं लेला लोग।