परछाई
आज मन्नू माँ के देहांत के बाद पहली बार घर आई थी ।सब कुछ पहले जैसा था । सब समान भी अपनी जगह था । घर मे सब थे बस माँ ही नही दिखी । ऐसा लग रहा था जैसे बस पड़ोस में गई होगी । हर कोने में उसकी ही परछाई नज़र आ रही थी ।
पर पापा अचानक कितने बूढ़े लगने लगे थे ।जब माँ ज़िंदा थी तो उन्हें कभी वक़्त ही नहीं था माँ के पास बैठने का ।और अब उनका कहीं जाने का मन ही नही करता था । बैठे2 बस दीवारें घूरते रहते हैं जैसे माँ की परछाई ढूंढ रहे हो ।
भाई को अचानक ज्यादा जिम्मेदार और भाभी को मुखर होते हुए देख रही थी मन्नू । क्योंकि अब घर की जिम्मेदारी भाभी पर आ गई थी । सारे काम जो माँ से पूछ कर होते थे वो भाभी से पूछ कर होने लगे थे । माँ की तरह पल्लू में चाबी का गुच्छा बांधे पूरे घर को माँ की तरह कुशलता से चला रही थी । मन्नू जितने दिन भी रही वो दीवारों ,अलमारियों खिड़कियों , कपड़ों ,कोनों ,किताबों सबमे गुमसुम सी माँ को ही देखती ढूंढती रही ।
आज उसे वापस जाना था । रोहित लेने आये थे । उनका स्वागत भाभी ने वैसे ही किया जैसे माँ करती थी । लौटते वक्त विदाई भी ठीक उसी तरह । आंखें भर आईं मन्नू की जब भाभी ने गले लगाकर कहा जिज्जी जल्दी आना मैं राह देखूंगी तो लगा उनके पीछे भी एक परछाई खड़ी है । अरे ये तो माँ है। फूट2 कर रो पड़ी मन्नू और बोली हाँ हाँ ‘भाभी माँ ‘ जल्दी ही आऊंगी । और गाड़ी में बैठ गई । और उधर भाभी सोच रही थी आज जिज्जी ने मुझे भाभी माँ क्यों कहा ???
डॉ अर्चना गुप्ता
08-11-2017