Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
25 Apr 2020 · 7 min read

पत्र

प्यारी स्वीटी,

आज रक्षाबंधन है और तुम्हारा जन्मदिन भी। आज तो डबल ख़ुशी का अवसर है।दोनों तरफ से दिन तो तुम्हारा ही है, इसलिए आज ‘नो बहस’ और ‘नो झिकझिक’। आज तुम्हारा हुक़्म सिर आँखों पर या यूँ कहूँ तो ‘आज का यह दिन मैंने दिया तुम्हें’।काफी दिनों से सोच रहा था कि इस बार क्या दूँगा तुम्हें ‘एज ए गिफ्ट’! दोस्त ने कहा लिपकलर सेट भेंट कर दो, मम्मा ने कहा टेडी ठीक रहेगा, वहीँ भैया ने किताब सुझाया। मगर सच कहूँ तो ये लौकिक चीजें मन को रत्ती भर भी रास न आई। खूब सोचा मैंने और सोचा, तब जाकर कहीं अचानक से दिमाग में एक बात कौंधी कि तुम्हें एक लेटर लिख कर गिफ्ट करूँ। एक ऐसा लेटर जो तुम्हारे समक्ष हर उन खट्टी-मीठी यादों को पेश करेगा जो हमने साथ में गुजारे हैं! एक ऐसा लेटर जिसमें वर्णन होगा उन तमाम झिकझिकों का जब मैंने तुम्हे गलती से कभी रुला दिया हो! एक ऐसा लेटर जो तुम्हें मज़बूर कर देगा उन लम्हों को याद करने के लिए जब हम-तुम बेबाक होकर कल्लू अंकल के होटल से लेकर झंडा-चौक तक का दौरा मिनटों में तय कर आते थे! एक ऐसा लेटर जिनमें वो पल कैद होने की पुरज़ोर कोशिश करेंगे जिनमें हम मस्ती के आलम को साथ लिए बेपरवाह कदम-से-कदम मिला हाथ पकड़ कर स्कूल जाया करते थे! ये लेटर तुम्हारे लिए तो होगा मगर सिर्फ तुम्हारा नहीं क्योंकि मेरे लिए ‘तुम’ यानि ‘हम’। ये लेटर ना स्वीटी, औपचारिकता के तमाम बंधनों से परे होगा क्योंकि ये महज़ एक लेटर नहीं बल्कि मेरा प्यार है तुम्हारे लिए।

मुझे वो दिन (पता नहीं कैसे) पर आज भी याद है जब तुम मेरी ज़िंदगी में पहली बार ख़ुशी की बौछार बनकर आयी थी। वक़्त की रेत आज तक उस दृश्य को धुँधला नहीं कर पायी है जिसमें तुम मेरी ज़िंदगी में परी बनकर आयी थी। कैसे उस खड़ूस नर्स ने तुम्हें गोद में लेने की इजाज़त भी नहीं दी थी ये कहकर “तुम अभी छोटे हो!”। क्या कहूँ कैसे समझाता उस नर्स को कि तुम्हारे लिए मेरी बाहें बेहद मजबूत हैं। कैसे समझाता कि खुद चोटिल होकर भी तुम्हें चोट पहुँचने नहीं दे सकता। ख़ैर बीत गयी सो बात गयी।

लोग कहते हैं तुम मुझ-सी ही हो और कहीं न कहीं मैं भी अपनी छवि तुममें देखता हूँ, जताता कभी नहीं। याद करो बचपन के वो दिन जब मैं तुम्हें डांस सिखाया करता था, उस गाने पर ‘सपने में रात में आया मुरली वाला रे’। पहली बार स्टेज पर तुम्हें डांस करते देख जो ख़ुशी मिली थी, अपूर्व थी। खुद को जीतता देख जितनी ख़ुशी हुई थी ना, उतना ही दुःख इस बात का भी था कि तुम ‘अंडर थर्ड’ में नहीं आ पाई थी, इसलिए तो मैंने अपना प्राइज तुम्हें थाम दिया था। मेरे लिए तो विजेता तुम ही थी और आज भी हो क्योंकि इतना प्यार जो करता हूँ मैं तुमसे। और तो और अगले साल डांस में फर्स्ट प्राइज जीतकर तुमने ये बात साबित कर ही दिया था। तुम कुछ बड़ी हुई और और अब तुम भी मेरे स्कूल में आ गयी थी। तुम्हारा कितना ख्याल रखता था मैं स्कूल में। हर पीरियड के अंत में तुमसे जाके मिल आना मेरा प्यार ही तो था। तुम भी कम ना थी, तुमने तो झट रिया और श्रुति को अपना दोस्त बन लिया था, वो भी इस कदर की तुम्हारी दोस्ती अब भी बरक़रार है। आँखें नाम हो जाती हैं जब उन दृश्यों को याद करता हूँ जिनमें हम-तुम चौकोर वाला बस्ता टाँगे, हाथ में हाथ, डाले दुनिया से बेफिक्र,रास्ते के सभी अड़चनों को लांघते स्कूल जाया करते थे। हमारे नन्हें-नन्हें पाँव एक लय में चलते थे। तुम जो कभी जूतों की लैस बाँधने के लिए रूकती तो मैं तुम्हारा बस्ता थामे वहीँ इंतज़ार करता। तुम जो कभी सड़क पार वाली दुकान पर मेरे बिना ही नटराज की पेंसिल खरीदने चली जाती तो कितना डांटता था मैं तुम्हें। कारण मुझे अब पता चला की मैं तुम्हारी असीम परवाह करता था। काश कि कोई मुझे वो पल लौटा दे।

समय अपने होने का एहसास करता रहा और अब मैं चौथे क्लास में जाने वाला था। मेरा दाखिला ‘सेंट मरीज़’ में कराया गया। मैं अंदर से भयभीत था और संशय में भी कि तुम अकेले स्कूल कैसे जाओगी! मगर तुम मेरी ही बहन हो ना, मेरी ही तरह बहादुर और निडर।तुम शान से बिना डर के स्कूल जाया करती थी। तुम काफी समझदार भी थी। मैंने और तुमने कितने ही पार्टीज में डांस भी किया है। आगे लिखने की हिम्मत नहीं होती, क्योंकि सर्वविदित है कि भावनाओं के प्रबल होते ही शब्द अवरुद्ध-से हो जाते हैं! क्यों इतनी जल्दी बीत जाता है समय! क्यों हमसे छीन ले जाता है हमारा बचपन! क्यों है वह इतना क्रूर! दिल नहीं है क्या उसके पास! उन हँसी के पलों के आगे इस उम्र की समझदारी तुच्छ नज़र आती है। मैं अब और समझदार नहीं बल्कि फिर से बच्चा बनना चाहता हूँ, मगर समय के आगे आज तक किसका चला है।

कितनें हसीन पल थे ना वो जब हमें समझ न थी और हम एक दूसरे के कपड़े शौक से पहन लिया करते थे और हँसते-हँसते अपना गेट-अप दादी से लेकर भैया तक सबको दिखा आते थे। बचपन में प्यार कम लड़ाईयाँ ज्यादा होती थी और तुम तो मगरमच्छ के आँसू निकलने में माहिर थी ही। इसी कौशल का इस्तेमाल कर तुम झट पापा के पास पहुँच जाती और जब पापा मुझे डांटते-डपटते तो उनकी पीठ के पीछे छिपकर, मुँह बनाकर मुझे चिढ़ाती। पापा की लाडली तो तुम हमेशा से ही रही हो।मम्मी जब रात के डिनर बनाने में मशगूल हुआ करती थी तब हम और तुम कैसे कमरे को सजाकर चकाचक कर देते थे। मम्मी के क़दमों की आहट सुनाई देते ही हम बत्ती बुझा देते और जब मम्मी कमरे में आती हम बत्ती ओन करके चिल्लाते ‘सरप्राइज’। मम्मी भी गदगद हो जाया करती थी।हम, तुम और भैया मिलकर मम्मी-पापा की एनिवर्सरी की गुप्त तैयारी करते थे। मेन्यू में केक, मंचूरियन, चौमिन और गोपाल-भोग शामिल हुआ करते थे। कितना मज़ा आता था न इन कामों में। हमारा एक पोस्ट-ऑफिस के आकार का मनी बैंक हुआ करता था जिसमें मैं और तुम अपनी पॉकेट मनी के पैसे बचाकर सहेजा करते थे। उन दिनों चीनी भरी रोटी हमारी फेवरिट हुआ करती थी। उन दिनों मैं तुम्हारा भाई भी हुआ करता था और टीचर भी। हम पढ़ते काम मस्ती ज्यादा किया करते थे। पढ़ते-पढ़ते कब हमारे सामने लूडो, केरम, और व्यापारी के बोर्ड्स आ जाते पता ही नहीं चलता। सुबह की सैर में तुम हमेशा मुझ से दौड़ में आगे निकल जाती थी और ज्यों ही मैं तुमसे एक पल के लिए भी आगे निकलता फिर ठीक तुम्हारे आगे-आगे दौड़ता और तुम्हारा रास्ता छेंक तुम्हें आगे बढ़ने ही नहीं देता। और तुम तुरंत चीटर-चीटर के नारे लगा तुरंत रो पड़ती। फिर तुम्हें चुप करने का भी जिम्मा मेरा। दुनिया भर के कपड़े तुम्हे ही तो मिलते थे मम्मी-पापा से। मगर मैं कभी जलता नहीं बल्कि खुश होता था तुम्हें नए नए कपड़ों में देखकर। प्रत्येक दुर्गा-पूजा में हम बर्तन के सेट वाले खिलौने जरूर खरीदते और घर में खूब खेला करते। हम, तुम और भैया कमरे में ही क्रिकेट भी खेला करते थे, जिसमें लकड़ी का एक डंडा हमारा बैट, प्लास्टिक की छोटी-सी गेंद और दरवाज़े हमारी बाउंड्रीज हुआ करते। हम और तुम हमेशा हार जाया करता था और भैया हमेशा जीतता। फिर हम कहने लगते “हम नहीं खेलेंगे जाओ”। भैया हमें फिर मनाता और हम फिर खेलते। बचपन में ऐसा लगता था कि मानो भैया तुम्हें मुझसे ज्यादा मानता था क्योंकि जब भी मैं तुम्हें मारता तो वो तुम्हें बचाता तो था ही, फिर मैं ठोका जाता था सो सूद में। हम-तुम साथ में बिन मतलब के ही स्टेशन से लेकर चंदन स्टोर तक का दौरा कर आते थे। स्कूल के बाद कितकित और दस-बीस खेलने का मज़ा ही कुछ और था। कैसे हम जल्दी -जल्दी खाना खाकर सोनपरी और शक्तिमान देखने जाया करते थे। सच कहूं तो तुम मेरे बचपन की हर यादों की बराबर की साझेदार हो। मेरा बचपन तुमसे है और तुम ही।

समय ने करवट ली और पुनः तुम मेरे ही स्कूल ‘सेंट मेरीज़’ में भी आ गयी। तुम्हें पूरा स्कूल स्वीटी कम और मेरी बहन के रूप में ज्यादा जानता था। हर टीचर तुम्हें बहुत मानने भी लगे थे। अब तुम भी अपनी मेधा के कारण स्कूल की स्टार बन चुकी थी। स्कूल में अब तुम्हारी भी शाख बनने लगी थी। मुझे आगे की पढ़ाई के लिए नेतरहाट आना पड़ा। सुना है तुम मेरे ही भाँति असेंबली कमांडर से लेकर सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी कार्यभार सम्भालती हो।मैं समझ गया हूँ कि तुम अपना और अपने स्कूल का नाम खूब रौशन करने की अथक कोशिश में जुड़ चुकी हो। तुम बीडीओ से सवाल-जवाब भी कर आती हो और कराटे में सबको चित्त भी, वहीँ तुम्हारा ‘धानी रे चुनरिया’ पर नृत्य सबको मंत्र-मुग्ध कर देता है। क्लास में तुमसे कोई आगे निकले ये तुम्हें कतई बर्दाश्त नहीं होता। कहाँ से लाती हो इतना साहस! अवश्य ही कोई गूढ़ होंगे तुम्हारे पास!

अब तो तुम बड़ी हो गयी हो न स्वीटी, मगर याद रखना मुझसे तुम हमेशा उतनी ही छोटी रहोगी जितना कि पहले थी। मैं तो आजीवन तुम्हारे साथ खेलूंगा, कुदूँगा, लड़ूंगा और चिढ़ाउंगा भी, सो गेट रेडी डिअर।तुमसे मैं कुछ भी मांगूँ तो शायद तुम मना ना करो मगर ठीक साढ़े-आठ बजे जोधा-अकबर के वक़्त गलती से भी रिमोट जो मांग लूँ यानी मेरा हाथ सांप के बिल में। तुम तो आज भी मुझसे लड़ते वक़्त ‘गधी’ और ‘भोंदी’ जैसे संबोधन सुनकर यूँ चिढ़ जाती हो मानो अब भी तुम मेरी वही छोटी-सी ,प्यारी गुड़िया हो जिसके साथ मैं वर्षों पहले खेला करता था।हमेशा ऐसे ही बनी रहना क्योंकि तू जो है तो मैं हूँ। जानती हो नेतरहाट में भी मैं तुम्हें बहुत मिस करता हूँ। खुशकिस्मत हूँ कि इस बार तुम्हारा जन्मदिन और रक्षाबंधन का पर्व मेरी छुट्टी में ही पड़ा है। मेरी कलाई पर तुमने जो राखी बाँधी है ना, मेरे लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं क्योंकि मेरे लिए तुम भगवान का वरदान हो रे! मेरी ज़िंदगी की आधी रौनक तुम से ही है। मेरे लिए बहन की परिभाषा ‘तुम’ में ही सिमट कर रह जाती है। ज़िन्दगी के तमाम रिश्तों से कहीं ऊपर है हमारा रिश्ता।’मेरी ज़िंदगी तुम से ही….’। बस अब और नहीं उबाउंगा।

सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा,
छोटा भैया!

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 378 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
जो होता है सही  होता  है
जो होता है सही होता है
Anil Mishra Prahari
क़ाबिल नहीं जो उनपे लुटाया न कीजिए
क़ाबिल नहीं जो उनपे लुटाया न कीजिए
Shweta Soni
कुंडलिया छंद
कुंडलिया छंद
sushil sarna
वो बाते वो कहानियां फिर कहा
वो बाते वो कहानियां फिर कहा
Kumar lalit
"बाजरे का जायका"
Dr Meenu Poonia
बारिश
बारिश
विजय कुमार अग्रवाल
धरती पर स्वर्ग
धरती पर स्वर्ग
Dr. Pradeep Kumar Sharma
NSUI कोंडागांव जिला अध्यक्ष शुभम दुष्यंत राणा shubham dushyant rana
NSUI कोंडागांव जिला अध्यक्ष शुभम दुष्यंत राणा shubham dushyant rana
Bramhastra sahityapedia
*जिंदगी के अनोखे रंग*
*जिंदगी के अनोखे रंग*
Harminder Kaur
जीवन
जीवन
Monika Verma
" एक बार फिर से तूं आजा "
Aarti sirsat
हरी भरी थी जो शाखें दरख्त की
हरी भरी थी जो शाखें दरख्त की
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
"वेदना"
Dr. Kishan tandon kranti
कभी हक़ किसी पर
कभी हक़ किसी पर
Dr fauzia Naseem shad
नव संवत्सर आया
नव संवत्सर आया
Seema gupta,Alwar
- दीवारों के कान -
- दीवारों के कान -
bharat gehlot
*दायरे*
*दायरे*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
Bundeli Doha pratiyogita-149th -kujane
Bundeli Doha pratiyogita-149th -kujane
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
हो देवों के देव तुम, नहीं आदि-अवसान।
हो देवों के देव तुम, नहीं आदि-अवसान।
डॉ.सीमा अग्रवाल
बाइस्कोप मदारी।
बाइस्कोप मदारी।
Satish Srijan
आज तो ठान लिया है
आज तो ठान लिया है
shabina. Naaz
2827. *पूर्णिका*
2827. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
"राहे-मुहब्बत" ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
■ जीवन सार
■ जीवन सार
*Author प्रणय प्रभात*
24)”मुस्करा दो”
24)”मुस्करा दो”
Sapna Arora
अंतहीन प्रश्न
अंतहीन प्रश्न
Shyam Sundar Subramanian
रंग उकेरे तूलिका,
रंग उकेरे तूलिका,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
*अभागे पति पछताए (हास्य कुंडलिया)*
*अभागे पति पछताए (हास्य कुंडलिया)*
Ravi Prakash
इश्क़ में भी हैं बहुत, खा़र से डर लगता है।
इश्क़ में भी हैं बहुत, खा़र से डर लगता है।
सत्य कुमार प्रेमी
बड्ड यत्न सँ हम
बड्ड यत्न सँ हम
DrLakshman Jha Parimal
Loading...