पत्नी का पिता
अनुभव पाया मैंने
मेरे अंतर्मन के कहने में
ये कैसी अनुभूति हुई
पत्नी के पिता बनने में
पत्नी का पिता ?
प्रश्नचिन्ह सा आया ना मन मे
मैं भी थोड़ा सकुचा था
पत्नी के पिता बनने में
पाया मैंने कि हर बेटी
कितने दुःख सहती है जीवन मे
घर से विद्यालय
और महाविद्यालय के प्रांगण में
मैंने करीब से सीखा
बेटी के संग अब कैसे रहना होगा
उसकी परछाई बन
काल को दूर झटकना होगा
देनी होगी शक्ति उसको
दुनिया से लड़ने में
अनुभव पाया मैंने
मेरे अंतर्मन के कहने में
ये कैसी अनुभूति हुई
पत्नी के पिता बनने में
जाति-वर्ण के भेद भयंकर
तरह तरह की जुमलेबाजी
होती खुल्लमखुल्ला
हर बेटी की खींचातानी
पग उसके हो न लथपथ
कंटक पर चलने से
अनुभव पाया मैंने
मेरे अंतर्मन के कहने में
ये कैसी अनुभूति हुई
पत्नी के पिता बनने में
गरिमा धोते कुछ पीएचडीधारक
धर्म न विद्या का जाने
अधर्म पढ़ा कथित इतिहासों से
फूट एकता में नित डाले
नकल मार बन बैठे
अपने जैसे सबको माने
कालिख से दिखते मुझको
दिन के उजियारे पन्ने में
अनुभव पाया मैंने
मेरे अंतर्मन के कहने में
ये कैसी अनुभूति हुई
पत्नी के पिता बनने में
विषय यही था
कुछ खास नही
पत्नी को पढ़ना था
मुझको फेरो की लाज में
सुरक्षा की छाया बन
कदम कदम चलना था
संकल्प लिया मन में
उसको उस पार ले जाऊँगा
बेटियों की इज़्ज़त बढ़े
उसे रानी लक्ष्मीबाई बनाऊंगा
सच को करीब से जानूँगा
नही सोचा था सपने में
अनुभव पाया मैंने
मेरे अंतर्मन के कहने में
ये कैसी अनुभूति हुई
पत्नी के पिता बनने में
अपनी बेटियों से
अब मित्रतापूर्ण व्यवहार
बनाना होगा
उस तक आते हर शर को
उल्टी दिशा दिखाना होगा
जाग उठा मैं अब आप क्यो नही
पत्नी का पिता बनना कठिन
बेटी का पिता तो बनना होगा
उसकी इच्छा ऊंचाई को जीना होगा
तम को तोड़ रवि की किरणों
तक पंहुचाना होगा
नारी शशक्त हो कहे “बनारसी”
बस देर है आधार के बनने में
अनुभव पाया मैंने
मेरे अंतर्मन के कहने में
ये कैसी अनुभूति हुई
पत्नी के पिता बनने में
कवि: अजय “बनारसी”