Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
28 Sep 2020 · 5 min read

पति के बिना जीवन

कस्बे में पंडित दीनानाथ का प्रतिष्ठित परिवार था। जमीन जायदाद, दो बेटे ललित और अखिलेश एक बेटी उमा थी, तीनों पढ़ रहे थे इस बार उमा हायर सेकेंडरी में पढ़ रही थी, पढ़ाई में अच्छी थी प्रथम श्रेणी में पास हो गई। एक दिन मां कमला ने व्यारू के समय बड़े प्यार से कहा, उमा के पिताजी आपको कुछ चिंता है कि नहीं, अब हमारी उमा बड़ी हो गई है, कुछ शादी ब्याह के बारे में सोचा है कि नहीं?
हां कमला चिंता तो मुझे भी हो रही है, कोई योग्य लड़का मिल जाए तो मैं तुरंत शादी कर दूंगा, मैंने कई रिश्तेदारों से लड़का बताने के लिए कहा है, वैसे भी जवान बेटी को घर में बिठाए रखना उचित नहीं माना जाता। उमा ने माता-पिता की बातें सुन ली थी मां से बोली मां दोनों बड़े भाई शहर में पढ़ रहे हैं, मुझे भी आगे पढ़ना है शादी पहले बड़े भाइयों की करो, मुझे क्यों इतनी जल्दी घर से निकालने पर तुली हो? नहीं बेटा पढ़ना है तो ससुराल में ही पढ़ लेना, हमें अपने फर्ज से फारिग होने दो। मां बाप ने एक न सुनी आखिर मामा जी के बताए हुए लड़के से उमा की सगाई तय हो गई। देव उठने के बाद बड़ी धूमधाम से उमा की शादी हो गई। ससुराल भी अच्छा था अच्छी खेती बाड़ी एक देवर एक नंद थी। उमा पति एवं ससुराल के व्यवहार से बहुत खुश थी। शादी को 2 साल होने जा रहे थे, शादी की वर्षगांठ जोर शोर से मनाने की तैयारी चल रही थी। प्रदीप इसी सिलसिले में शहर जा रहे थे, उमा से भी कहा तुम भी चलो कुछ अपने लिए साड़ी और जरूरत का सामान खरीद लाना, दोनों शहर गए अपना काम कर वापस लौट रहे थे कि एक डंपर ने सामने से टक्कर मार दी। प्रदीप मौके पर ही दम तोड़ चुके थे, उमा हॉस्पिटल में बेहोश पड़ी थी, हंसती खेलती हंसती खेलती जिंदगी पर वज्रपात हो चुका था, आगे सब अंधकार ही अंधकार। माता-पिता भाई 13 वीं के बाद घर चले गए उमा तो जैसे पथरा सी गई, 7 माह की गर्भवती थी ससुराल वाले कुलदीपक की आशा कर रहे थे। समय आने पर प्रसूति हुई, उमा ने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया। कन्या का जन्म होते ही ससुराल वालों को तो जैसे सांप सूंघ गया हो, कुलदीपक की आशा लगाए बैठे थे। सास ससुर देवर नंद सबका व्यवहार उमा के प्रति बदल गया। बात-बात पर ताने एक दिन तो सास ने कह दिया मुंह काला कर जाओ यहां से, कुलटा है मेरे बेटे को खा गई। उमा को ताने सुनने के अलावा कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। आखिर पूरी जिंदगी पड़ी है, मायके में मां ने यही पाठ पढ़ाया था, कि एक बार मायके डोली उठती है, तो ससुराल से ही अर्थी उठती है। उमा के दुख का कोई पाराबार न था, ससुराल वाले सोचते थे कलमुही ने लड़की जनि है, शादी विवाह करना पड़ेगा, हिस्सा मांगेगी सो अलग, ससुराल वाले उमा को भगाने के प्रयास में थे। आखिर एक दिन देवर गलत नीयत से भाभी के कमरे में पहुंच गया, उमा की नींद खुल गई देवर जी यह क्या कर रहे हो? चिल्लाई सभी घरवाले एकत्र हुए तो देवर ने कहा, मां मैंने इसके कमरे से किसी को भागते हुए देखा है, उल्टा ही आरोप लगा दिया, उमा की एक न सुनी। अब तो उमा को घर छोड़ने के अलावा कोई चारा दिखाई नहीं देता था। आखिर पूरी जिंदगी पड़ी है, सुबह बस में बैठ कर मायके आ गई, मां से लिपट कर रोने लगी भाभियां इस दुख भरी घड़ी में भी कहती रहीं, ननद जी कुछ भी हो ऐसे आपको घर छोड़कर नहीं आना चाहिए, आखिर तुम्हारा हक है उस घर पर, आखिर पूरी जिंदगी पड़ी है, कहां तेर करोगी? कौन तुम्हारा खर्च उठाएगा? कौन पढ़ाएगा? कौन ब्याह शादी करेगा? मां ने बहुओं को चुप कराते हुए कहा, चुप भी हो जाओ सांस तो लेने दो? बहुयें मुंह बनाते हुए उठ खड़ी हुईं। उमा चुपचाप पथराई आंखों से सब सुन रही थी। ससुराल की परिस्थिति देख काशी नाथ जी की हिम्मत उमा को दोबारा ससुराल भेजने की नहीं हुई, इस भयानक हादसे, बहू बेटों का उमा के प्रति व्यवहार, सारी परिस्थितियों से काशीनाथ और कमला बीमार रहने लगे थे। एक दिन काशी नाथ जी को सीने में दर्द उठा, आंगन में गिर पड़े फिर उठ न सके, अब तो बहू बेटों का व्यवहार और भी बदल गया। साल भर भी ना हुआ था कि एक दिन कमला भी चल बसी। उमा अब और भी अकेली हो गई थी। गुमसुम सी अपने और बच्ची के भविष्य के बारे में सोचती रहती थी, उमा को एक कोठरी रहने के लिए मिली थी जो मिल जाता खा लेती, जीवन निकाल रही थी कि भाई भाइयों ने हिस्से के डर से उमा को उमा को उस कोठरी से भी निकाल दिया। ऐसी स्थिति में कई बार उमा को आत्मघात करने का विचार आया लेकिन बच्ची की ओर देखते ही जीने की लालसा उठ खड़ी होती थी। आखिर हिम्मत मजबूत की, कस्बे में ही एक कमरा किराए पर ले, अगरबत्ती की फैक्ट्री में काम करने लगी। बच्ची का स्कूल में दाखिला करा दिया, खुद भी d.ed करती रही। आखिरकार उमा d.ed पास हो गई। एकाध साल बाद उमा की शिक्षक की नौकरी भी लग गई। उमा आराम से रहने लगी। उमा को ससुराल मायके के अत्याचार याद आते ही घाव हरे हो जाते थे। एक दिन जैसे माता-पिता कह रहे हो उठो उमा, तुमको किसने छोड़ा, तुम भी किसी को मत छोड़ो। अपना अधिकार मांगो और इस असंवेदनशील समाज को सबक सिखाओ। ठीक है तुम भाग्यशाली हो तुम्हारी नौकरी लग गई है, लेकिन तुम जैसी कितनी ही कन्याओं को इस समाज में कितना अत्याचार सहना पड़ता है? तुम से अच्छा कौन जानता है? तुम अपनी मेहनत और काबिलियत से एक इज्जतदार जिंदगी जी रही हो, लेकिन तुमको तो इस समाज ने कहीं का नहीं छोड़ा था। उठो उमा उठो। उमा के शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई, जैसे नई शक्ति मिल गई हो। आखिर काबिल वकील कर उमा ने ससुराल एवं मायके वालों पर हिस्से का मुकदमा दायर कर दिया। कुछ समय बीतने पर वह मुकदमा भी जीत गई। आज ससुराल और मायके वाले उमा के कदमों में पढ़े थे।

सुरेश कुमार चतुर्वेदी

Language: Hindi
8 Likes · 4 Comments · 387 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from सुरेश कुमार चतुर्वेदी
View all
You may also like:
ग़ज़ल
ग़ज़ल
प्रीतम श्रावस्तवी
एक अजीब सी आग लगी है जिंदगी में,
एक अजीब सी आग लगी है जिंदगी में,
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
जीवन है मेरा
जीवन है मेरा
Dr fauzia Naseem shad
*रामचरितमानस अति प्यारा (चौपाइयॉं)*
*रामचरितमानस अति प्यारा (चौपाइयॉं)*
Ravi Prakash
पालनहार
पालनहार
Buddha Prakash
*** बचपन : एक प्यारा पल....!!! ***
*** बचपन : एक प्यारा पल....!!! ***
VEDANTA PATEL
सपनों के सौदागर बने लोग देश का सौदा करते हैं
सपनों के सौदागर बने लोग देश का सौदा करते हैं
प्रेमदास वसु सुरेखा
अवसर
अवसर
संजय कुमार संजू
उनका ही बोलबाला है
उनका ही बोलबाला है
मानक लाल मनु
बादल
बादल
Shutisha Rajput
मैंने एक दिन खुद से सवाल किया —
मैंने एक दिन खुद से सवाल किया —
SURYA PRAKASH SHARMA
ऐ सावन अब आ जाना
ऐ सावन अब आ जाना
Saraswati Bajpai
दोहे- उड़ान
दोहे- उड़ान
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
तुम सत्य हो
तुम सत्य हो
Dr.Pratibha Prakash
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
क्या करते हो?
क्या करते हो?
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
कैसे भूल सकता हूँ मैं वह
कैसे भूल सकता हूँ मैं वह
gurudeenverma198
कुछ लिखा हैं तुम्हारे लिए, तुम सुन पाओगी क्या
कुछ लिखा हैं तुम्हारे लिए, तुम सुन पाओगी क्या
Writer_ermkumar
दिल के टुकड़े
दिल के टुकड़े
Surinder blackpen
खरीद लो दुनिया के सारे ऐशो आराम
खरीद लो दुनिया के सारे ऐशो आराम
Ranjeet kumar patre
समाज सुधारक
समाज सुधारक
Dr. Pradeep Kumar Sharma
😢साहित्यपीडिया😢
😢साहित्यपीडिया😢
*Author प्रणय प्रभात*
जब जब ……
जब जब ……
Rekha Drolia
23/42.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका* 🌷गाथे मीर ददरिया🌷
23/42.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका* 🌷गाथे मीर ददरिया🌷
Dr.Khedu Bharti
मोह माया ये ज़िंदगी सब फ़ँस गए इसके जाल में !
मोह माया ये ज़िंदगी सब फ़ँस गए इसके जाल में !
Neelam Chaudhary
I would never force anyone to choose me
I would never force anyone to choose me
पूर्वार्थ
पुश्तैनी दौलत
पुश्तैनी दौलत
Satish Srijan
मोहब्बत और मयकशी में
मोहब्बत और मयकशी में
शेखर सिंह
अज्ञात है हम भी अज्ञात हो तुम भी...!
अज्ञात है हम भी अज्ञात हो तुम भी...!
Aarti sirsat
बिजलियों का दौर
बिजलियों का दौर
अरशद रसूल बदायूंनी
Loading...