पता नहीं क्या बदा है
फ़िलबदीह
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मेरे पास अब अपना क्या है।
वो ही नहीं खुदा बचा क्या है।
वो छोड़ गये मुझे तनहाँ-
बताया ही नहीं खता क्या है।
या तो मुआफ कर जाते-
या फिर बोलते सजा क्या है।
वो छोड़ गये अकेला हमें।
कोई तो बताये पता क्या है।
फर्ज की राहो में कुर्बान हुए-
फिर भी कहते मजा क्या है।
पता नहीं मुझे इस जीवन का-
क्या होगा भविष्य बदा क्या है।
अब तो आ जाओ हमराज –
बोल दो मुझसे रजा क्या है।
…..।।।……
पं.संजीव शुक्ल “सचिन”