पतंग
आसमान में कभी ऊपर
तो कभी नीचे उड़ती
कभी पेंच काटती , कटती
कट कर , लुट कर
पूरा करती है सफ़र अपना
इंसानी हाथों में डोर से
बंधी और सधी होती है
पतंग
पतंग को देखकर
अक्सर सोचता हूं कि
पतंग की तरह ही तो है
इंसानी जिंदगी
वक़्त की डोर से बंधी
इंसानी जिंदगी
राह और मंजिल भी जिसकी
तय कराता है वक़्त
डोर के एक छोर पर उल्लास है
दूसरे छोर पर पसरी खामोशी
एक छोर से दूसरे छोर तक का
सफ़र ही है इंसानी ज़िंदगी…….