पठनीय एवं संग्रहणीय है ‘साहित्य सम्पदा’ का डाॅ. मधुकांत विशेषांक
पत्रिका समीक्षा :
पठनीय एवं संग्रहणीय है ‘साहित्य सम्पदा’ का डाॅ. मधुकांत विशेषांक
– आनन्द प्रकाश ‘आर्टिस्ट’
अपने प्रकाशन के दूसरे वर्ष में चल रही, रोहतक हरियाणा से पवन कुमार(पवन मित्तल) के सम्पादन एवं स्वामीत्व में प्रकाशित ‘साहित्य सम्पदा’ त्रैमासिक हिन्दी साहित्य पत्रिका का 15 सितम्बर 2017 को प्रकाशित अंक रोहतक निवासी हरियाणा के वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. मधुकांत पर केन्द्रित है। आवरण पृष्ठ को मिलाकर कुल 40 पृष्ठ की इस पत्रिका में सम्पादकीय से लेकर फोटो गैलरी तक सबकुछ पठनीय एवं संग्रहणीय है।
सम्पादक पवन कुमार ने अपने सम्पदकीय में साहित्य की शक्ति पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि ‘‘साहित्य में वो शक्ति है, जो साहित्यकार को उसके सृजन के दम पर युगों-युगों तक ज़िन्दा रख सकती है।’’ अपनी बात की पुष्टि में उन्होंने प्रस्तुत अंक के केन्द्रिय साहित्यकार डाॅ. मधुकांत जी का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा है कि ‘‘आमतौर पर कोई भी व्यक्ति जिस क्षेत्र में अपनी रोटी-रोजी कमा रहा है, उसकी कमियों को कभी उज़ागर नहीं करता है, लेकिन रोहतक ज़िले के सांपला में जन्में शिक्षक एवं साहित्यकार डाॅ. अनूप बंसल इसके अपवाद रहे हैं। साहित्य जगत में ‘मधुकांत’ नाम से सृजन करते-करते शायद इन्हें भी आभास नहीं हुआ होगा कि परिजनों द्वारा दिया गया नाम कब गौण हो गया।’’
सम्पादक के उपरोक्त कथन की पुष्टि पत्रिका में डाॅ. मधुकांत के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के विभिन्न पहलूओं पर दिए गए इनके परिचित साहित्यिक व्यक्तियों के लेख, टिप्पणी, काव्य रचना, प्रेषित पत्रों में व्यक्त विचार, पुस्तकों की भूमिका में व्यकत विचार और सचित्र समाचार तथा छाया चित्रों से भी होती है।
डाॅ. अंजना गर्ग ने अपने लेख ‘साईकिल पे सवार मधुकांत’ में इस बात का रहस्योद्घाटन किया है कि मधुकांत जी महीने में एक बार साईकिल ज़रूर चलाते हैं। इसी तरह से हरनाम शर्मा ने इन्हें सामाजिक सरोकारों का रचनाकार बताया है। हरनाम शर्मा के मित्र यशदेव वशिष्ठ (सेवानिवृत्त उप शिक्षा निदेशक नगर निगम दिल्ली) ने अपने संक्षिप्त लेख में इन्हें विनम्र स्वभाव और सादे व्यक्तित्व का धनी बताया है। भारत भूषण सांघीवाल ने इन्हें परम शिक्षाविद और महान साहित्यकार कहकर इनका अभिनन्दन किया है। डाॅ. ओमप्रभात ने इन्हें अपने मित्र के रूप में छोटा कद किन्तु बड़ा हृदय वाला अनोखे प्रेमिल स्वभाव का व्यक्ति बताया है। गुरुग्राम हरियाणा के अशोक जैन ने इन्हें अपने बड़े भाई सरीखा बताया है। रोहतक के श्यामलाल कौशल ने इन्हें बहुआयामी प्रतिभा का धनी बताया है। रोहतक निवासी लेखिका आशा खत्री ‘लता’ ने कहा है कि मधुकांत जी साहित्य को समाज कल्याण से जोड़ते हैं। अपने लेख में व्यक्त विचारों को आशा जी ने अपने कई जीवन-प्रसंगों के उल्लेख से पुष्ट करते हुए स्पष्ट किया है कि मधुकांत जी ने किस तरह से समय-समय पर एक समाज सेवक के रूप में आगे आकर उनकी मदद की है। आशा जी का कहना है कि ‘‘लिखने को बहुत से लेखक हैं दुनिया में मगर मानव सेवा का जज्बा विरलों में ही दिखाई देता है। मानवता के लिए कार्य करते हुए एक बहुत ही नेकदिल और स्नेहिल इंसान के रूप में हमारे हृदय में स्थान पाया है आदरणीय मधुकांत जी ने।’’ पंजाबी बाग दिल्ली के नरेश भटनागर ने मधुकांत जी को धन-सम्मान से विरक्त व्यक्ति की संज्ञा दी है। स्व. अनिल सवेरा ने अपने निधन से ठीक एक दिन पहले प्रेषित अपने लेख में मधुकांत जी को अपने नाम को सार्थक करते व्यक्तित्व की संज्ञा दी है। हरियाणा के स्वनामधन्य बाल साहित्यकार घमण्डीलाल अग्रवाल ने इन्हें बहुमुखी व्यक्तित्व का धनी बताते हुए, इनके व्यक्तित्व के कई पक्षों का उल्लेख अपने लेख में किया है। रोहतक के तिलक ने इन्हें समकालीन महामानव की संज्ञा दी है। प्रकाशक मधुदीप ने अपने लेख ‘मेरे लिए मधुकांत’ में मधुकांत जी को अपना लंगोटिया यार बताते हुए इनके साथ बिताए कई अविस्मरणी पलों का ज़िक्र किया है। सिरसा निवासी लेखिका डाॅ. शील कौशिक ने इन्हें सरल, सहज, उदार व शालीन व्यक्तित्व का स्वामी बताया है। रोहतक निवासी कवि विरेन्द्र मधुर ने इन्हें साहित्य का भीष्म कहा है। गुरुग्राम निवासी साहित्यकार नरेन्द्र गौड़ का कहना है कि मधुकांत जी का स्वभाव है कि ‘जो भी प्यार से मिला हम उसी के हो लिए’। देवरिया निवासी उमेश गुप्त ने अपने लेख में ‘साहित्य सम्पदा’ के सम्पादक पवन मित्तल के माध्यम से मधुकांत जी से हुए अपने प्रथम परिचय का उल्लेख करते हुए अपनी बात को विस्तार दिया है तथा मधुकांत जी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला है। सिरसा निवासी साहित्यकार राजकुमार निजात ने इनके नाटक ‘जय शिक्षक’ को आधार बनाते हुए स्पष्ट किया है कि इस नाटक ने उन्हें बहुत प्रभावित किया है। निजात जी ने इस श्रेष्ठ नाटक के लिए मधुकांत जी को मन से बधाई दी है। रोहतक के मंजुल पालीवाल ने अपने लेख ‘समाजसेवी एवं साहित्यकार – डाॅ. मधुकांत’ में मधुकांत जी के साहित्यिक एवं समाजसेवी व्यक्तित्व का सम्यक अवदान प्रस्तुत किया है।
उपरोक्त के अलावा पत्रिका में मधुकांत जी के जीवन व कार्यों को दृष्टिगत रखते हुए लिखी गई कई कविताएं, प्रेरक प्रसंग, जब-तब प्राप्त पत्रों के अंश, प्रकाशित पुस्तकों की भूमिकाओं से अंश, साहित्यिक व सामाजिक गतिविधियों और प्राप्त सम्मानों के सचित्र समाचारों के समय-समय के छाया चित्र, स्वयं मधुकांत जी के दो संक्षिप्त लेख ‘मैं साहित्यकार नहीं हूँ’ तथा ‘इन्द्रा जी की प्रेरणा आशीर्वाद बन कर मार्गदर्शन करती रही’ और प्रस्तुत विशेषंक के प्रकाशन समय तक प्रकाशित हो चुकी मधुकांत जी की कुल 93 पुस्तकों की सूची दी गई है। इस समय इनकी प्रकाशित पुस्तकों की संख्या 100 से अधिक हो चुकी है और इस प्रकार मधुकांत जी ने अपने जीवन में 100 पुस्तके लिखने के लक्ष्य को पूरा कर लिया है।
वस्तुतः अपनी तरह की विशेष साहित्यिक पत्रिका ‘साहित्य सम्पदा’ का ‘साहित्य व रक्तदान को समर्पित डाॅ. मधुकांत’ विषय पर केन्द्रित प्रस्तुत अंक प्रेरक, शिक्षापरद एवं ज्ञानवर्धक होने के कारण निश्चित रूप से पठनीय एवं संग्रहणीय है। इसके केन्द्र बिन्दु आदरणीय मधुकांत जी तो अपने अमूल्य साहित्यिक अवदान के लिए बधाई व शुभकामनाओं के पात्र हैं ही, इनके साथ-साथ पत्रिका के सम्पादक पवन कुमार(पवन मित्तल) भी साधुवाद के पात्र हैं।
– आनन्द प्रकाश ‘आर्टिस्ट’
सर्वेश सदन, आनन्द मार्ग,
कोंट रोड़,भिवानी-127021(हरियाणा)
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