पङ्खुरी
टूट पड़ा पलकों से आँशू बनके
मत पूछ मेरी हालात इस गर्दिशों में
बिखर गया हूँ पङ्खुरी के पङ्ख से
मैं साञ्झ बन चला इस दीवाने के
अजनबी राही में गस्ती, ठहराव कहाँ मुझे ?
व्यथा भरी शहर में मैं भी फँस गया
क्यों काँटे भर पड़ी इस तन में ?
इस शोले वेदन में, क्यों मैं बावला ?
दुआ दस्तूर के भी आलम नहीं
लहू धार भी बन चला पसीनो से
किस्मत मेरी स्वप्निल में कफन
धराशाई एतबार मेरी दहलीज के
नफरत रञ्ज के घूँट – घूँट में
अविचल रहा दुर्दान्त अहर्निश
मैं तड़पन ग्लानि में पतवार बना
निर्मम चन्द्रहास शमशीर धार बने हम
मञ्ज़िल की राहों में धूमिल आँशू
भटक गया मैं, ख्यालों से भी गुमनाम
होश में नहीं असमञ्जस हिय क्षिति से
विलीन में अपरिचित भव छोड़ चला