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24 Jul 2021 · 1 min read

“पंखा”

“पंखा”
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‘पंखा’ घूमे , गोल -गोल,

हवा देता यह , पूरा हॉल;

गर्मी , ‘पंखा’ दूर भगाए;

फिर ये , ठंडक पहुचाये,

कभी , ‘छत’ से ये लटके;

कभी , दीवाल पर अटके;

टेबल पर बैठ कभी , घूमे,

कभी पैरों पे खड़े ये झूमे,

या फिर, नाचे ये हाथों में;

हवा दे ये, बातों -बातों में;

खुद जब ,बिजली खाता;

सबको तब हवा खिलाता,

घर , पसीना और कपड़ा;

भी , ये अच्छे से सुखाता।
००००००००००००००००

…… ✍️प्रांजल
……….कटिहार।

9 Likes · 2 Comments · 570 Views
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