Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
19 Jul 2019 · 6 min read

पंक्चर

पंक्चर ————— ‘आओ काका, आओ, लगता है फिर तुम्हारी रिक्शा के पहिए में पंक्चर हो गया है’ पटरी पर बैठे साइकिलों की मरम्मत करने वाले और पंक्चर ठीक करने वाले रघु ने कहा। ‘हां भई, अभी किसी सवारी को छोड़ने जा रहा था, रास्ते में ट्यूब पंक्चर हो गई, सवारी रास्ते में उतर गई, मैं आधे रास्ते के पैसे मांग नहीं सकता था क्योंकि मैंने काम पूरा नहीं किया था। पूछा होता तो दिल को सुकून मिलता, पर सवारी को भी जल्दी थी, वह भी उतर कर दूसरे रिक्शे में बैठ कर चली गई, उसने एक बार पूछा तक नहीं ‘बाबा, यहां तक के पैसे ले लो’ हालांकि मैं लेता नहीं। जीवन भर ईमानदारी की कमाई खाता आया हूं। काम पूरा न करता तो बेईमानी कहलायी जाती और अगर पैसे मांगने पर सवारी दो-चार बातें सुना देती तो अपमान अलग होता और दिन अलग खराब जाता’ रामू काका ने समझाया।

‘भई, जितना रास्ता तुमने उसका तय कराया उतने के तो हकदार थे तुम’ रघु ने कहा। ‘नहीं रघु बेटे, अगर तुम ट्यूब में पंक्चर पूरा न लगाओ यह कह कर कि सामान बचा नहीं है, जितना काम किया है, उतने पैसे दे दो, तो क्या यह उचित होगा, ऐसे ही सवारी को किसी भी वजह से बीच में उतरना पड़े तो उसे तकलीफ होती है’ रामू काका ने तर्क देकर समझाने की कोशिश की। हालांकि रघु उस तर्क से सहमत नहीं हुआ पर फिर भी बोला ‘तुम नहीं बदलोगे रामू काका’ कहते कहते रघु पहिया खोलकर ट्यूब में पंक्चर ढंूढने लगा। ‘रामू काका, देखो तो इस ट्यूब में कितने ज्यादा पंक्चर हो चुके हैं और कितनी बार यह मरम्मत हो चुकी है, अब मेरी मानो तो ट्यूब नयी डलवा लो’ रघु ने कहा। ‘रघु, तुम कहते तो ठीक हो, पर कल तक के पैसे मैं घर दे चुका हूं, आज सुबह से सवारी ढोकर जो कमाया है उससे नई ट्यूब तो आने से रही, तुम अभी तो मरम्मत ही कर दो, पंक्चर लगा दो, ज़रा अच्छे से लगा देना कहीं दुबारा जल्दी न हो जाये’ रामू काका ने कहा।

‘काका, चिन्ता मत करो, मैं डबल काम कर दूंगा, जब तुम्हारे पास ट्यूब के पैसे इकट्ठे हो जायें, बदलवा लेना’ रघु ने काम करते करते कहा ‘और हां, मैं बाकी पुराने पंक्चर भी चैक कर लेता हूं ताकि जल्दी तुम्हें कोई दिक्कत न हो।’ ‘ठीक है, मैं पटरी पर थोड़ी देर बैठ जाता हूं, कुछ आराम मिलेगा’ कहते हुए रामू काका पटरी पर बैठ गये। ‘काका, तुम सारा दिन रिक्शा की गद्दी पर तो बैठे ही रहते हो, तो अब बैठने पर आराम मिलने की बात क्यों करते हो!’ रघु ने यूंही पूछा। ‘रघु, रिक्शा की गद्दी और इस पटरी पर बैठने में बहुत फर्क है, शायद तुम न समझो’ रघु काका ने उस सड़क की ओर देखते हुए कहा ‘अगर सरकार हमारी गरीबी कम नहीं कर सकती तो कम से कम सड़कों तो ऐसी बना दे कि ट्यूब जल्दी जल्दी पंक्चर ही न हो, मगर हम जैसों का किसे ख्याल है।’

‘काका, अगर पंक्चर नहीं होंगे तो मेरा काम कैसे चलेगा! रघु ने हंसते हुए कहा। ‘रघु, पंक्चर तो जरूर होंगे, कभी रिक्शा पर ओवरलोड के कारण तो कभी ट्यूब में कम हवा के कारण, पर कमबख्त इन खराब सड़कों के कारण तो नहीं होंगे। इन सड़कों पर चलते हुए सवारी को भी तकलीफ होती है, झटके लगते हैं। अब रिक्शा में कोई कमानी के पट्टे तो नहीं लग सकते जो सड़क के झटकों को कम कर दें। सवारी तो कुछ देर के लिए झटके खाती है पर हम तो सारा दिन ही झटके खाते हैं। हां, अगर मेरी रिक्शा में जब भी कोई बुजुर्ग, महिला या छोटे बच्चे बैठते हैं तो मैं रिक्शा बहुत आराम से चलाता हूं ताकि उन्हें कोई तकलीफ न हो।’ ‘काका, पंक्चर बना दिया है, थोड़ी देर सूख जाये तो मजबूत हो जायेगा, बाकी भी पानी में डालकर चैक कर लिये हैं, सभी ठीक हैं, यह पंक्चर किसी कील के घुस जाने से हुआ है’ रघु ने बताया।

‘कम्बख्त कील, ये कील भी क्या चीज है, इसने मेरी रिक्शा के टायर में घुसते हुए ट्यूब में जैसे खंजर घोंप दिया हो, इसका क्या जाता है, मेरा तो नुकसान हो गया, हर एक ऐसा कील मेरे ताबूत का कील साबित हो रहा है’ रामू काका बोलते गये। ‘काका, कील को क्यों दोष देते हो, दोष तो उसे दो जिसने कील सड़क पर फेंक दिया, कील का क्या है, कील तो तुम्हारी झोंपड़ी में तुम्हारे कपड़े टांगने में काम आता है, कील तुम्हारे जूतों की मरम्मत में काम आता है, कील से तुम अपनी रिक्शा की सीट को अक्सर जोड़ते रहते हो। कील न हों तो तुम पुलिया कैसे पार करके आओगे। पुलिया के फट्टों को भी तो कीलों ने आपस में जोड़ रखा है। कील तो जोड़ने का काम कर रहा है। कील बेचारा क्या करे वह तो जंग से जंग लड़कर वीरगति को प्राप्त हो जाता है। हमारे हथौड़ों की चोट सहता है। कभी कभी तो हथौड़े की चोट से उसकी टोपी ही उतर जाती है, उसका अपमान हो जाता है। पर कील ने कभी पलटकर वार नहीं किया’ रघु ने दार्शनिकता बघारी।

‘तू बड़ा मास्टर हो गया है जो इतनी बड़ी बातें कर रहा है, पर तूने एक बात ठीक कही दोष तो उसका है जिसने कील सड़क पर फेंक दिये, उसे तभी समझ आयेगी जब उसके ही पैरों में कील चुभेगा’ रामू काका नाराज सा होते हुए बोले। ‘लो काका, एकदम दुरुस्त हो गई तुम्हारी ट्यूब, अब काम पर जाओ और खूब कमाओ’ रघु ने कहा। ‘रघु बेटे, तूने कहा खूब कमाओ, पर इस उम्र में मेरी टांगें जितना काम करेंगी उतना ही तो कमा पाऊंगा, अब ये कोई घोड़े की टांगें तो नहीं हैं जो सरपट दौड़ लगायें। हां, एक बात मानता हूं, इन्होंने मेरे शरीर को चालू रखा है। अगर शरीर कहीं से पंक्चर हो गया तो मुश्किल हो जायेगा, उसे ठीक कराना तो टेढ़ा काम होता है, हां कभी कभी गरम हो जाता है तो लगता है बुखार हो गया है। पर जब कोई काम आता है तो बुखार को भी रहम आ जाता है, वह चला जाता है। अच्छा, बताओ तुम्हारे कितने पैसे हुए? फिर मैं चलूं, अभी तो पूरा दिन पड़ा है?’ रामू काका ने कहा।

‘काका, तुम केवल बारह रुपये दे दो’ रघु ने कहा। ‘रघु, इसमें तुमने हवा भी भरी है और तुमने उस तख्ती पर लिख रखा है कि हवा भरवाने के पांच रुपये होंगे और खुद भरने के दो रुपये, तो उसके पैसे’ रामू काका ने कहा। ‘काका, इतना हक तो रहने दो’ रघु ने हंसते हुए कहा। ‘अच्छा भई, तुम न हो तो मेरी जिन्दगी की गाड़ी कैसे चले, समझ ही नहीं आता, बड़ी दुकान पर जाओ तो ठीक से बात ही नहीं करते और फिर पैसे अनाप शनाप’ रामू काका जेब में पैसे टटोलते हुए बोले। रामू काका के पाजामे की जेब से एक दस का नोट निकला। फिर उन्होंने कमीज की जेब में हाथ डाला तो मुस्कुरा कर रह गये ‘रघु, यह दस रुपये रखो, दो रुपये का सिक्का कमीज की जेब में रखा था पर ध्यान नहीं दिया कि मेरी कमीज की जेब भी पंक्चर हो गयी है, वह कमबख्त उसी में से निकल गया, मेरा साथ छोड़ गया। मैं थोड़ी देर में कमा कर ला देता हूं, विश्वास रखना।’

‘कैसी बातें करते हो रामू काका, तुम पर तो विश्वास किया जा सकता है, पर पैसे वालों पर नहीं। अभी कुछ दिन पहले एक साहब अपने बच्चे की साइकिल ठीक करवाने आये थे। मैंने बीस रुपये मांगे तो उनकी जेब में पांच सौ रुपये का नोट निकला। मेरे पास पांच सौ रुपये की छुट्टे कहां से आते, सो मजबूरी में मैंने कह दिया ‘साहब, बाद में दे जाना’ पर अब सात दिन हो गये हैं। न जाने कब आयेंगे। शायद तभी आयेंगे जब फिर उनके बच्चे की साइकिल को मेरी जरूरत पड़ेगी’ रघु ने हंस कर कहा। वे अभी बातें कर ही रहे थे कि एक व्यक्ति कंधों से लटकते भारी भरकम बैग में नयी कमीजें लादे और कुछ हाथ में लिये बोल रहा था ‘सौ रुपये में चार, सौ रुपये में चार, तीस की एक’ और धीरे धीरे आगे बढ़ता आ रहा था। रघु ने रामू काका को देखकर उनकी फटी जेब वाली कमीज की ओर इशारा किया तो रामू काका ने अपनी पंक्चर हो चुकी यानि फटी जेब को अपने हाथों से ऐसे ढक लिया जैसे कोई अपनी इज्ज़त बचा रहा हो।

‘लोगों की ज़िन्दगी में न जाने कितनी तरह के पंक्चर होते हैं, यदि हम अपनी सामथ्र्य के अनुसार उनकी मरम्मत कर सकें तो वे ज़िन्दगियां भी खुशहाल हो जायें।’

Language: Hindi
466 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
बेशक़ कमियाँ मुझमें निकाल
बेशक़ कमियाँ मुझमें निकाल
सिद्धार्थ गोरखपुरी
!! यह तो सर गद्दारी है !!
!! यह तो सर गद्दारी है !!
Chunnu Lal Gupta
3231.*पूर्णिका*
3231.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
आप और हम
आप और हम
Neeraj Agarwal
■ इनका इलाज ऊपर वाले के पास हो तो हो। नीचे तो है नहीं।।
■ इनका इलाज ऊपर वाले के पास हो तो हो। नीचे तो है नहीं।।
*Author प्रणय प्रभात*
प्राची संग अरुणिमा का,
प्राची संग अरुणिमा का,
पंकज पाण्डेय सावर्ण्य
हाय गरीबी जुल्म न कर
हाय गरीबी जुल्म न कर
कृष्णकांत गुर्जर
कोई भी इतना व्यस्त नहीं होता कि उसके पास वह सब करने के लिए प
कोई भी इतना व्यस्त नहीं होता कि उसके पास वह सब करने के लिए प
पूर्वार्थ
गुलाब-से नयन तुम्हारे
गुलाब-से नयन तुम्हारे
परमार प्रकाश
कहाँ है मुझको किसी से प्यार
कहाँ है मुझको किसी से प्यार
gurudeenverma198
अधूरी बात है मगर कहना जरूरी है
अधूरी बात है मगर कहना जरूरी है
नूरफातिमा खातून नूरी
समझ ना आया
समझ ना आया
Dinesh Kumar Gangwar
छोड़ दिया किनारा
छोड़ दिया किनारा
Kshma Urmila
"स्मरणीय"
Dr. Kishan tandon kranti
*बड़े नखरों से आना और, फिर जल्दी है जाने की 【हिंदी गजल/गीतिक
*बड़े नखरों से आना और, फिर जल्दी है जाने की 【हिंदी गजल/गीतिक
Ravi Prakash
मेरा नाम
मेरा नाम
Yash mehra
मुस्कुराती आंखों ने उदासी ओढ़ ली है
मुस्कुराती आंखों ने उदासी ओढ़ ली है
Abhinay Krishna Prajapati-.-(kavyash)
फुर्सत से आईने में जब तेरा दीदार किया।
फुर्सत से आईने में जब तेरा दीदार किया।
Phool gufran
अपनों को दे फायदा ,
अपनों को दे फायदा ,
sushil sarna
18, गरीब कौन
18, गरीब कौन
Dr Shweta sood
दो शे' र
दो शे' र
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
जो ये समझते हैं कि, बेटियां बोझ है कन्धे का
जो ये समझते हैं कि, बेटियां बोझ है कन्धे का
Sandeep Kumar
ना अश्रु कोई गिर पाता है
ना अश्रु कोई गिर पाता है
Shweta Soni
किए जिन्होंने देश हित
किए जिन्होंने देश हित
महेश चन्द्र त्रिपाठी
*┄┅════❁ 卐ॐ卐 ❁════┅┄​*
*┄┅════❁ 卐ॐ卐 ❁════┅┄​*
Satyaveer vaishnav
सत्य की खोज
सत्य की खोज
लक्ष्मी सिंह
चांद सी चंचल चेहरा 🙏
चांद सी चंचल चेहरा 🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
चोट शब्दों की ना सही जाए
चोट शब्दों की ना सही जाए
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
बिन फ़न के, फ़नकार भी मिले और वे मौके पर डँसते मिले
बिन फ़न के, फ़नकार भी मिले और वे मौके पर डँसते मिले
Anand Kumar
वायरल होने का मतलब है सब जगह आप के ही चर्चे बिखरे पड़े हो।जो
वायरल होने का मतलब है सब जगह आप के ही चर्चे बिखरे पड़े हो।जो
Rj Anand Prajapati
Loading...