न तो मैं शायर हूँ ; न शायरी आती है
My shayri
मैं ना तो शायर हूँ, ना शायरी आती है
कभी कभी जोशे आगोश में,
तुक बन्दी कर दिता हूँ
तो वाह वाह हो जाती है
और कभी दे दना दन हो जाती है
कियूँ कि ढ़लते उम्र में
पता ही नहीं चलता,
कब क्हां क्या कह गया |
ना तो मुझे ल्फजों कि , ना ज़्बां की
पहचान है , ना ईलम है
बस लगा दिता हूँ, जो आ जाये ज़्बा पर
कभी कभी वाह वाह सुन्ने की चाह की
एक गुफतगु पेश है||
महफिल जमी हुई थी मैं गुजर रहा था,
वाह वाह की आवाज, कानो को
चीरती हुई, दिल में समा गई
मेरे कदम को, रूहानी ताकत
महफिल में खिच लाई
लोगो ने फर्माइश कि,
मैने फरमया …
मैने कहा पेश है ….. आवाज वाह वाह
मेने कहा अर्ज है …. आवाज वाह वाह
मैने सोचा, साले कहने नहीं देते
मिजाज गरमा गया, और ज़्बान फिसल गया
सालो खुदा की खुदाई की
वाह वाह करते हो
और खुदाई की तोहीन करते हो
मैं चीखा, खुदा ने इंसान को
नंगा पेदा किया
और तुम कपडे पहनते हो|
संनाटा छा गया , सब के मुंह
नीले पीले हो गये
मैं समझ गया ..
पर देर हो चुकी थी
दे दना दन दे दना दन
आज यही तक. आदाब ||