“””””न तुम बदले न हम””””
कोशिशें तो बहुत की थी हमने तुम्हें बदलने की।
फितरत थी तुम्हारी टेढ़ी-मेढ़ी चाल चलने की।
न तुम बदले न हम बदले,
हसरत है अब तो खुद की ही राहों पर चलने की।।
तुम्हारी और मेरी सोच में फर्क बस इतना है।
साथी मैं गरीबों का, चाहत तुम्हारी धन से लिपटने की।।
रहो तुम तुम्हारी मस्ती में ,हमारी भी अपनी बस्ती है।
हस्ती न तुम्हारी रहेगी न मेरी, बारी जब आएगी चलने की।।
फैसले तुम्हारे निजी ,हम बदल नहीं सकते।
कर लो अनुनय कुछ भी, जरूरत अहंकार से डरने की।।
राजेश व्यास अनुनय