न चली बीवी के आगे (हास्य कविता )
जाता हो शायद ही कोई दिन
जिस दिन न होती हो
बीवी से भिडन्त
टारगेट एक ही
वो बोले तो हम नहीं
हम बोलें तो वो नहीं
थी शादी की सालगिरह
उसने कहा: ” आना जल्दी
घूमेंगे फिरेंगे खायेंगे पियेंगे
मौज करेंगे और क्या ”
पर हमने तो सोच था
मारना है टंगड़ी
दिन भर की मौज मस्ती
बीबी बैठी करती इन्तजार
पहुँचे रात को हैरान परेशान
दिखाने बीवी को
मचा खूब घमासान
हम हो रहे खुश
मन ही मन
एक महिने बाद पड़ा
जन्मदिन हमारा
हम ने कहा:
” रहना तैयार घूमेंगे फिरेंगे
खायेंगे पियेंगे मौज करेंगे
और क्या ”
पहुँचे जब घर अपने
दरवाजे पर था ताला बड़ा
चिपकी थी पर्ची एक
” हूँ मायके मैं ”
आऊंगी कब
“पता नहीं ”
अगर कर सकते हो
चौपट तुम तो मैं भी
रहने वाली नहीं पीछे
भागे दौड़े गये उसके चौखट
पकड़ कान मांगी माफी
“अब न होगा कुछ चौपट
रहूँगा बन कर दास तुम्हारा ।”
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल