नज़ारे सफलता के
प्रकृति में देखिए चलके नज़ारे सफलता के।
मायूस न हो यार आएंगे दिन सबलता के।।
फूलों से हँसना कलियों से सीखें मुस्क़राना।
नदियों से गतियाँ पर्वत से सीखें सिर उठाना।
फैले हैं कितने सहारे यहाँ उज्ज्वलता के।
मायूस न हो यार…………………………..।
गुलाब काँटों में कमल दलदल में है खिलता।
चाँद-सूरज-सा कोई मुसाफ़िर नहीं है मिलता।
लहरें छू लेती किनारे जवां चंचलता के।
मायूस न हो यार……………………………।
धरती विदीर्ण कर हल से डालें हैं जब दाना।
ख़ुश होके ये फ़सल से भरती घर का खज़ाना।
किरणें करती हैं इशारे बयां निश्छलता के।
मायूस न हो यार…………………………….।
बादल छाते बरसते हवाएँ भी चलती हैं।
मौसम आते जाते सदाएँ भी बदलती हैं।
दिन-रात बनें हैं नारे निशां निरंतरता के।
मायूस न हो यार……………………………..।
******राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
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