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4 Dec 2020 · 6 min read

नोसेना दिवस

नौसेना दिवस: नौसेना के वीरों को सलाम
#पण्डितपीकेतिवारी

भारतीय जल सीमा की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभा रही भारतीय नौसेना की शुरुआत वैसे तो 5 सितंबर 1612 को हुई थी, जब ईस्ट इंडिया कंपनी के युद्धपोतों का पहला बेड़ा सूरत बंदरगाह पर पहुंचा था और 1934 में ‘रॉयल इंडियन नेवी’ की स्थापना हुई थी, लेकिन प्रति वर्ष 4 दिसंबर को ‘भारतीय नौसेना दिवस’ मनाए जाने की वजह इसके गौरवमई इतिहास से जुड़ी हुई है।
भारतीय नौसेना दिवस का इतिहास 1971 के ऐतिहासिक भारत-पाकिस्तान युद्ध से जुड़ा है, जिसमें भारत ने पाकिस्तान पर न केवल विजय प्राप्त की थी, बल्कि पूर्वी पाकिस्तान को आजाद कराकर स्वायत्त देश ‘बांग्लादेश’ का दर्जा दिलाया था। भारतीय नौसेना अपने इस गौरवमयी ऐतिहासिक दिन की याद में हर साल 4 दिसंबर को नौसेना दिवस मनाती है।

भारतीय नौसेना का इतिहास
आधुनिक भारतीय नौसेना की नींव 17वीं शताब्दी में रखी गई थी, जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने एक समुद्री सेना के बेड़े रूप में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की। यह बेड़ा ‘द ऑनरेबल ईस्ट इंडिया कंपनीज मरीन’ कहलाता था। बाद में यह ‘द बॉम्बे मरीन’ कहलाया। पहले विश्व युद्ध के दौरान नौसेना का नाम ‘रॉयल इंडियन मरीन’ रखा गया।

26 जनवरी, 1950 को भारत गणतंत्र बना और इसी दिन भारतीय नौसेना ने अपने नाम से ‘रॉयल’ को त्याग दिया। उस समय भारतीय नौसेना में 32 नौ-परिवहन पोत और लगभग 11,000 अधिकारी और नौसैनिक थे। 15 अगस्त, 1947 में भारत को जब देश आजाद हुआ था, तब भारत के नौसैनिक बेड़े में पुराने युद्धपोत थे।
आईएनएस ‘विक्रांत’ भारतीय नौसेना पहला युद्धपोतक विमान था, जिसे 1961 में सेना में शामिल किया गया था। बाद में आईएनएस ‘विराट’ को 1986 में शामिल किया गया, जो भारत का दूसरा विमानवाही पोत बन गया और जो 06 मार्च, 2017 तक भारतीय नौसेना में सेवारत रहा। भारतीय नौसेना का नया वायुयानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य, विराट का उत्तराधिकारी है। आज भारतीय नौसेना के पास एक बेड़े में पेट्रोल चालित पनडुब्बियां, विध्वंसक युद्धपोत, फ्रिगेट जहाज, कॉर्वेट जहाज, प्रशिक्षण पोत, महासागरीय एवं तटीय सुरंग मार्जक पोत (माइनस्वीपर) और अन्य कई प्रकार के पोत हैं।

आईएनएस विक्रमादित्य
16 नवम्बर, 2013 को भारतीय नौसेना में शामिल किए गए बहु प्रतीक्षित 2.3 अरब डॉलर का आईएनएस विक्रमादित्य भारतीय नौसेना को अधिक शक्तिशाली और गौरवान्वित करनेवाला विमानवाहक पोत है। भारत के तत्कालीन रक्षामंत्री एके एंटनी ने विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य को रूसी प्रधानमंत्री दमित्रि रोगोजिन तथा दोनों देशों की सरकारों एवं नौसेना के वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में नौसेना में शामिल किया।

आईएनएस विक्रमादित्य आधुनिक सेंसरों और हथियारों से सुसज्जित है, इस पर एक साथ मिग-29के नौसेना लड़ाकू विमान के साथ ही कामोव 31 और कामोव 28 पनडुब्बी रोधी और समुद्री निगरानी 10 हेलीकॉप्टर रहेंगे। यह आईएनएस विराट से दोगुना बड़ा है। इसकी एक दिन में 600 नॉटिकल माइल्स के सफर की क्षमता जल्द से जल्द दुश्मन के तट तक पहुंचने योग्य बनाती है।
आईएनएस विक्रमादित्य एक तरह से तैरता हुआ शहर की तरह है, जिसका वजन 45 हजार, 500 टन है। इस युद्धपोत की लंबाई 284 मीटर है, जो तीन फुटबॉल मैदानों के बराबर है। यह युद्धपोत 60 मीटर ऊंचा है जो लगभग 20 मंजिला इमारत के बराबर है। इसमें 22 छतें हैं। इस पर 1600 नौसैनिक तैनात होंगे। इन नौसैनिकों के लिए हर महीने 16 टन चावल, एक लाख अंडे, 20 हजार लीटर दूध आवश्यक होगा।

आईएनएस विक्रमादित्य लगातार 45 दिन समुद्र में रह सकता है। इसकी क्षमता आठ हजार टन ईंधन की है। इसके हवाई अड्डे से सात हजार समुद्री मील या 13,000 किमी तक अभियान चलाया जा सकता है। यानी इसकी छत से उड़े लड़ाकू विमान अमेरिका तक तबाही मचा सकते हैं।
इसके अलावा भारतीय नौसेना की उड्डयन सेवा कोच्चि में आईएनएस ‘गरुड़’ के शामिल होने के साथ शुरू हुई। इसके बाद कोयम्बटूर में जेट विमानों की मरम्मत व रखरखाव के लिए आईएनएस ‘हंस’ को शामिल किया गया।
घरेलू तकनीक का उत्तम हेलीकॉप्टर ‘ध्रुव’
नौसेना में उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर (एएलएच) घरेलू तकनीक से निर्मित हेलीकॉप्टर हैं। इन्हें ध्रुव नाम दिया गया है। इनकी डिजाइन और इनका निर्माण हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने किया है। इसने भारतीय सेना के तीनों अंगों के अलावा भारतीय तटरक्षक, सीमा सुरक्षा बल और विदेशों में भी अपनी बहुआयामी क्षमता को साबित किया है।
नौसेना के बेड़े में शामिल किए गए हेलीकॉप्टरों के नए दस्ते का नाम इंडियन नेवल एयर स्क्वोड्रन (आईएनएस) 322 है। इस दस्ते का मुख्य आकर्षण है- ध्रुव हेलीकॉप्टर। ध्रुव हेलीकॉप्टर नौसेना के तलाशी और बचाव कार्य में बहुत लाभदायक है। रात में देखने के उपकरणों से लैस इन हेलीकॉप्टरों का उपयोग अभियानों और गश्त में भी किया जा सकता है। छोटे अभियानों और तटीय सुरक्षा के लिए ध्रुव जैसे हेलीकॉप्टर नौसेना के लिए उपयोगी हैं।
आधुनिक युग के लड़ाकू विमान को फरवरी 2010 में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था। ‘मिग-29 के’ अत्यंत शक्तिशाली लड़ाकू विमान है। यह विमान अत्याधुनिक विमानभेदी और पोतभेदी मिसाइलों, सटीक निशाना साधनेवाले बमों और अत्याधुनिक प्रणाली सहित हथियारों के भंडार से लैस है। इनकी डिजाइन और इनका निर्माण हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने किया है। इसने भारतीय सेना के तीनों अंगों के अलावा भारतीय तटरक्षक, सीमा सुरक्षा बल और विदेशों में भी अपनी बहुआयामी क्षमता को साबित किया है।
भारतीय नौसेना की ताकत
भारतीय नौसेना के पास एक विमानवाहक समेत करीब 300 पोत, पनडुब्बियां आदि हैं। इसके बेड़े में 14 फ्रिगेट्स, 11 विनाशक पोत, 22 कॉर्वेट्स, 16 पनडुब्बियां, 139 गश्ती पोत और चार बारूदी सुरंगों का पता लगाने और उनको तबाह करने वाले पोत हैं।
महत्वपूर्ण ऑपरेशंस
ऑपरेशन राहत : भारतीय सशस्त्र बलों ने 2015 में ऑपरेशन राहत को अंजाम दिया था। इस ऑपरेशन में युद्धग्रस्त यमन से लोगों को सुरक्षित निकाला गया। आईएनएस सुमित्रा को लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए भेजा गया था और आईएनएस मुंबई एवं आईएनएस तरकश को उसकी सुरक्षा के लिए भेजा गया था। इस मिशन में न सिर्फ भारतीय नागरिकों बल्कि विदेशी नागरिकों को भी यमन से सुरक्षित निकाला गया। भारतीय नौसेना ने करीब 3000 से ज्यादा भारतीयों को सुरक्षित निकाला।
ऑपरेशन सुकून : साल 2006 में इजरायल और लेबनान के बीच युद्ध हुआ था। बड़ी संख्या में भारत के अलावा श्रीलंका और नेपाल के लोग लेबनान युद्ध में फंस गए थे। उनलोगों को सुरक्षित निकालने की जिम्मेदारी को भारतीय नौसेना ने निभाया था।
ऑपरेशन तलवार : 1999 में करगिल युद्ध के दौरान ऑपरेशन तलवार को अंजाम दिया गया था। भारतीय नौसेना ने कराची पोर्ट के करीब पाकिस्तानी पोतों और नौकाओं के लिए अवरोध पैदा कर दिया। इससे पाकिस्तान में तेल और ईंधन की आपूर्ति प्रभावित हुई। बाद में पाकिस्तान ने भारत से अवरोध हटाने का आग्रह किया।
ऑपरेशन कैक्टस : ऑपरेशन कैक्टस में आईएनएस गोदावरी और आईएनएस बेतवा शामिल थे 1988 में चलाए गए इस ऑपरेशन का मकसद मालदीव संकट को सुलझाना था।
ऑपरेशन ट्राइडेंट : ऑपरेशन ट्राइडेंट 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ अंजाम दिया गया था। पाकिस्तान के कराची पोर्ट पर भारतीय नौसेना ने हमला करके उसके कई पोतों को तबाह कर दिया था।
ऑपरेशन विजय : ऑपरेशन विजय 1961 में गोवा को पुर्तगालियों से चंगुल से आजाद कराने के लिए चलाया गया था। उसमें पहली बार नौसेना का इस्तेमाल किया गया था।
भारतीय नौसेना की जल सीमा में महत्वपूर्ण भूमिका
भारतीय नौसेना ने जल सीमा में कई बड़ी कार्रवाइयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिनमें प्रमुख है जब 1961 में नौसेना ने गोवा को पुर्तगालियों से स्वतंत्र करने में थल सेना की मदद की। इसके अलावा 1971 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ा तो नौसेना ने अपनी उपयोगिता साबित की।
भारतीय नौसेना ने देश की सीमा रक्षा के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा शांति कायम करने की विभिन्न कार्यवाहियों में भारतीय थल सेना सहित भाग लिया। सोमालिया में संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्रवाई इसी का एक हिस्सा थी।
देश के अपने स्वयं के पोत निर्माण की दिशा में आरंभिक कदम उठाते हुए भारतीय रक्षा मंत्रालय ने बंबई (मुंबई) के मजगांव बंदरगाह को 1960 में और कलकत्ता (कोलकाता) के गार्डन रीच वर्कशॉप (जीआरएसई) को अपने अधिकार में लिया। वर्तमान में भारतीय नौसेना का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है और यह मुख्य नौसेना अधिकारी ‘एडमिरल’ के नियंत्रण में होता है।
भारतीय नौ सेना तीन क्षेत्रों की कमान (पश्चिम में मुंबई, पूर्व में विशाखापत्तनम और दक्षिण में कोच्चि) के तहत तैनात की गई है, जिसमें से प्रत्येक का नियंत्रण एक फ्लैग अधिकारी द्वारा किया जाता है।
भारतीय नौसेना दिवस समारोह की विशेषता
भारतीय नौसेना दिवस समारोह का आयोजन पूर्वी नौसेना कमांड द्वारा विशाखापट्नम में किया जाता है। इस अवसर पर शहीद नौसैनिकों की स्मृति में पुष्पचक्र अर्पित किया जाता है। तत्पश्चात पनडुब्बी जहाज, हवाई जहाज पोत, विमानों आदि का प्रदर्शन किया जाता है। आर.के. समुद्री तट पर आयोजित इस समारोह में हजारों नागरिक सहभागी होते हैं। इस अवसर पर सेनानायक द्वारा नागरिकों से समुद्री तट को स्वच्छ रखने की अपील की जाती है, जिससे कि पक्षियों की आवाजाही को समुद्री तट से रोका जा सके और जल सीमा सुरक्षा के कार्य को सुगम बनाया जा सके।

Language: Hindi
Tag: लेख
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