नोंक ? झोंक
नोक – झोक (हास्य)
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मैं सच्चा पत्नी व्रत पालक
फिर भी हमें भगाती है,
चाय पिलाना बात दूर की
झाडू ले दौड़ाती हैं।
बात जो झाडू तक ही रहती
हमें नहीं कोई बात थी भाई,
आज तो झाडू संग में बेलन
देखो कैसे बना कसाई।
कहती हैं तूं हुआ बावला
“ख्याल” अजीब पाले रहता,
जब देखो सौतन की बातें
मन ही मन साले रहता।
देख रही हूँ भौरे बन तूं
कई एक फूल को सूंघ रहा है,
रात रात भर देख के मुझको
बिन बातों के ऊंघ रहा है।
आज दिखाती हूँ मैं तुमको
बीवी क्यों कर गाली है,
तेरे जीवन मे विस्फोटक
बीवी है या साली है।
आज से फिरतूं नाम ना लेगा
मुझ बिन बाहर वाली का,
इस लायक ना छोडूं तुझको
रहे ना दूजी डाली का।
बहुत हुआ तू अभी सुधर जा
आज नहीं बचने वाला,
यहीं हाल गर रहा”सचिन”तो
हर दिन तूं पीटने वाला।
…………✍
पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार