नेटवर्किंग के दुनिया (हास्य कविता)
नेटवर्किंग के दुनिया (भोजपुरी हास्य कविता)
*****************************************
लैपटॉप मोबाइल जब से चलन में आईल बा।
तब से हमार जीवन देखीं अउँजियाइल बा।
गदहो के बाप बोले , दिनवों के रात बोले।
नेटवर्किंग दुनिया में हरदम बन्हाईल बा।।
गदहा आ घोड़ा सबे , आज संगे – संगे चले।
बड़का मोबाइल लगे , एही से ढीठाइल बा।।
लागल रहे दिन – रात करत रहे चैट- बात।
माई – बाबू भुल देश दूनिया में समाइल बा।।
फेसबुक वाट्सएप ट्विटर मे ब्यस्त रहे।
लागत ऐकर दुनिया ईहै , ऐही में भुलाइल बा।।
भूलल ई किताब – कापी बैजू बा ऐकर साथी।
गूगले के ज्ञान पर अब , बबूआ भोराइल बा।।
मिटिंग के बदले सेटिंग, सर्विस के बदले नेटिंग।
बबूआ हमार नेटवर्किंग से फूलाइल बा।।
शूगर बढल रहे , बी पी भी चढल रहे।
गजबे के नोकरी ई , किडनी तक डेराइल बा।।
पेटवे से बा कनेक्शन , नेटवें से बा सलेक्शन।
सहमल बा शेर अऊरी , गीदड़ फनफनाइल बा।।
वईसे बा हजार साथी , फेसबुक के संहाती।
जेईसे ही जरूरत , नाही केहू लऊकाइल बा।।
फिर भी संचार से , भईल बा क्रान्ति सगरे।
आज सगरे दुनिया ई ऐही में घेराइल बा।।
………….✍
पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण..बिहार