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17 Aug 2019 · 1 min read

नीति युक्त दोहे

विष अमृत सम भाव से,कर लेता जो पान।
इस जग में शिव की तरह, उसको योगी मान।।

ठोकर खाये हर कदम, सहा भाग्य का लेख।
बाँट रहे फिर भी सुमन, धैर्यवान बन देख।।

चिन्ता इतनी ही करो, हो जाये बस काम।
इतनी भी करना नहीं, जीवन करें तमाम।।

जो मुस्काता है सदा, होता नहीं उदास।
उसके हर मुसकान में, छुपा आस- विश्वास।।

दूर रहो उस शख़्स से,भरे भाव जो हीन।
हर पल तुमको कोसता, जीवन लेता छीन।।

कभी अकेले बैठ कर, करना खुद पर गौर।
फिर खुद से ज्यादा बुरा, नहीं लगेगा और।।

कुंठा-आशा से घिरा,दिल के है दो भाग।
एक सुलाता है मुझे ,दूजा कहता जाग।।

जब मैं थक कर गिर गयी, मंजिल पर था ध्यान।
मन का पंछी कह रहा, चलना जब तक जान।
-लक्ष्मी सिंह

Language: Hindi
1 Like · 407 Views
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