निशाने पर हवा के
निशाने पर हवा के है मुहब्बत मेरी
बचाएगी इसे कब तक इबादत मेरी
उठा तूफां जहाने इश्क में ये कैसा
सलामत रह रहेगी अब न चाहत मेरी
गुमाँ था इश्क पर अपने मुझे भी कितना
गया ठुकरा कर जब जाना हकीकत मेरी
दीवानी इश्क़ में जुल्मों सितम सहती रही
बचा पाया न उसको ये शराफत मेरी
परिंदों की तरह उड़ता फ़लक में मैं भी
कटे हैं पर नही है वो नजाकत मेरी
– ‘अश्क़’