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6 Jul 2018 · 2 min read

निशानी पर शा’इरों के अजीब-ओ-गरीब ख़्यालात

संकलनकर्ता: महावीर उत्तरांचली

(1.)
दास्ताँ-गो की निशानी कोई रक्खी है कि वो
दास्ताँ-गोई के दौरान कहाँ जाता है
—शाहीन अब्बास

(2.)
इस दिल के दरिया में दर्दों की रवानी है
ऑंसू मेरे मुझ पर तेरी दी निशानी है
—रमेश प्रसून

(3.)
उन की उल्फ़त में ये मिला हम को
ज़ख़्म पाए हैं बस निशानी में
—महावीर उत्तरांचली

(4.)
उड़ते पत्तों पे लपकती है यूँ डाली डाली
जैसे जाते हुए मौसम की निशानी माँगे
—शाहिद कबीर

(5.)
ले जा दिल-ए-बेताब निशानी मिरी क़ासिद
सीमाब से है मर्तबा-ए-इश्क़ ख़बर ला
—वाजिद अली शाह अख़्तर

(6.)
कफ़-ए-पा हैं तिरे सहरा की निशानी ‘बेदार’
मर गया तो भी फफूलों में रहे ख़ार कई
—मीर मोहम्मदी बेदार

(7.)
बार-ए-दिगर समय से किसी का गुज़र नहीं
आइंदगाँ के हक़ में निशानी फ़रेब है
—शाहिद ज़की

(8.)
रंग अब कोई ख़लाओं में न था
कोई पहचान निशानी में न थी
—राजेन्द्र मनचंदा बानी

(9.)
ख़ुश्क पत्तों को चमन से ये समझ कर चुन लो
हाथ शादाबी-ए-रफ़्ता की निशानी आई
—मख़मूर सईदी

(10.)
तुम उसे पानी समझते हो तो समझो साहब
ये समुंदर की निशानी है मिरे कूज़े में
—दिलावर अली आज़र

(11.)
चटानों पर करें कंदा निशानी अपने होने की
सुनहरे काग़ज़ों के गोश्वारे डूब जाएँगे
—अली अकबर अब्बास

(12.)
फेंकी न ‘मुनव्वर’ ने बुज़ुर्गों की निशानी
दस्तार पुरानी है मगर बाँधे हुए है
—मुनव्वर राना

(13.)
हवाएँ फूल ख़ुशबू धूप बारिश
किसी की हर निशानी मौसमों में
—नसीर अहमद नासिर

(14.)
अक़्ल-मंदी की निशानी सींग हैं
भैंस ने सर पर जड़े हैं दोस्तो
—रियाज़ अहमद क़ादरी

(15.)
उस के गाँव की एक निशानी ये भी है
हर नलके का पानी मीठा होता है
—ज़िया मज़कूर

(16.)
ज़िंदगी जल चुकी थी लकड़ी सी
राख बस बच गई निशानी में
—सचिन शालिनी

(17.)
याद आऊँगा जफ़ा-कारों को
बे-निशानी है निशानी मेरी
—इम्दाद इमाम असर

(18.)
मेरी हस्ती है मुमय्यज़ ब-अदम
बे-निशानी है निशानी मेरी
—इस्माइल मेरठी

(19.)
यहाँ इक शहर था शहर-ए-निगाराँ
न छोड़ी वक़्त ने इस की निशानी
—नासिर काज़मी

(20.)
तुम मिरे दिल से गए हो तो निगाहों से भी जाओ
फिर वहाँ ठहरा नहीं करते निशानी छोड़ कर
—शहनवाज़ ज़ैदी

(21.)
वक़्त गुज़रता जाता और ये ज़ख़्म हरे रहते तो
बड़ी हिफ़ाज़त से रक्खी है तेरी निशानी कहते
—आनिस मुईन

(22.)
शब-ए-विसाल अदू की यही निशानी है
निशाँ-ए-बोसा-ए-रुख़्सार देखते जाओ
—दाग़ देहलवी

(23.)
जान की तरह से रखता है अज़ीज़ ऐ गुल-रू
दाग़-ए-दिल लाला ने समझा है निशानी तेरी
—हैदर अली आतिश

(24.)
रंग ने गुल से दम-ए-अर्ज़-ए-परेशानी-ए-बज़्म
बर्ग-ए-गुल रेज़ा-ए-मीना की निशानी माँगे
—मिर्ज़ा ग़ालिब

(25.)
हो कोई बहरूप उस का दिल धड़कता है ज़रूर
मैं उसे पहचान लेता हूँ निशानी देख कर
—शहज़ाद अहमद

(26.)
सूरत-ए-हाल पर हमारे मोहर
दाग़ ने ज़ख़्म ने निशानी की
—हैदर अली आतिश

(27.)
सारे संग-ए-मील भी मंज़िल हो सकते हैं भेद खुला
हाथों की रेखाओं में हर मंज़िल एक निशानी है
—अम्बरीन सलाहुद्दीन

(साभार, संदर्भ: ‘कविताकोश’; ‘रेख़्ता’; ‘स्वर्गविभा’; ‘प्रतिलिपि’; ‘साहित्यकुंज’ आदि हिंदी वेबसाइट्स।)

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