निकल न जाए दम…
दुनिया के भरे बाजार में, कहीं पीछे छूट न जाएें हम !
चलने का कोई हुनर नहीं है, कहीं लुट ना जाए हम!!
बेगेरत सी लगती दुनिया,कहीं अकेले ना पड़ जाएं हम!
दुनिया बस, बहती नदिया की धारा ,बेहते ही ना रह जाएं हम !!
तैरने का कोई हुनर नहीं है, कहीं डूब न जाएं हम!
फसा हुआ हूँ बीच भवर में, कैंसे तट तक जाएं हम !!
और बस एक मांझी की तलाश है, कैंसे ढूंढ निकालें हम!
राह हो तो कोई दिखा दो,जरा पास जाके उन्हे,
आंखों में छुपा लें हम!!
और सांसे भी अब कराह उठीं हैं, कहीं निकल न जाएे दम ! कहीं निकल न जाएे दम!!₹जीत
घोसी..