Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
2 Jun 2018 · 4 min read

नासिरा शर्मा से फीरोज अहमद की बातचीत के कुछ अंश…

नासिरा शर्मा का जन्म १९४८ में इलाहाबाद शहर में हुआ। उन्होंने फारसी भाषा और साहित्य में एम. ए. किया। हिन्दी, उर्दू, अंग्रेज़ी , फारसी एवं पश्तो भाषाओं पर उनकी गहरी पकड़ है। वह ईरानी समाज और राजनीति के अतिरिक्त साहित्य कला व संस्कृति विषयों की विशेषज्ञ हैं। इरा़क, अ़फ़गानिस्तान, सीरिया, पाकिस्तान व भारत के राजनीतिज्ञों तथा प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों के साथ उन्होंने साक्षात्कार किये, जो बहुचर्चित हुए।
अब तक दस उपन्यास, छह कहानी संकलन, तीन लेख-संकलन, सात पुस्तकों के फ़ारसी से अनुवाद, ‘सारिका’, ‘पुनश्च’ का ईरानी क्रांति विशेषांक, ‘वर्तमान साहित्य’ के महिला लेखन अंक तथा ‘क्षितिजपार’ के नाम से राजस्थानी लेखकों की कहानियों का सम्पादन। ‘जहाँ फव्वारे लहू रोते हैं’ के नाम से रिपोर्ताजों का एक संग्रह प्रकाशित। इनकी कहानियों पर अब तक ‘वापसी’, ‘सरज़मीन’ और ‘शाल्मली’ के नाम से तीन टीवी सीरियल और ‘माँ’, ‘तडप’, ‘आया बसंत सखि’,’काली मोहिनी’, ‘सेमल का दरख्त’ तथा ‘बावली’ नामक दूरदर्शन के लिए छह फ़िल्मों का निर्माण।
नासिरा शर्मा से फीरोज अहमद की बातचीत के कुछ अंश…

आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला बधाई।
शुक्रिया।
जब आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला तो आपको कैसा लगा?
झटका ! लेकिन एलान के बाद जो ख़ुशी मेरे पाठकों और जानने वालों के द्वारा मुझ तक पहुँची उसने मुझे विश्वास दिया और यह एहसास भी कि मेरे लेखन को दिल से पसन्द करने वाले हैं मज़े की बात यह भी लगी कि पारिजात को पुरस्कार मिला और मुझे पढ़ने वाले कुइयांजान और शाल्मली को याद करते रहे। साहित्य अकादमी पुरस्कार मिलने के बाद पूरे साढे़ तीन माह या तो मैं इन्टरव्यू देती रही या फिर शहरों के चक्कर लगाती रही। यह सारी बातों ने उस झटके का प्रभाव कम करके मुझे धीरे-धीरे प्रसन्नता के घेरे में बाँधा कि सचमुच कुछ महत्त्वपूर्ण घटा है।
क्या आपको नहीं लगता कि यह पुरस्कार आपको पहले मिलना चाहिए था। आपकी राय….
यह बात लगभग सब ने कही मगर मेरा मानना है कि हर चीज़ अपने समय से होती है क्योंकि जो समाचार समय-समय पर मिलते रहे थे वह यह कि शाल्मली, ख़ुदा की वापसी, ज़ीरो रोड अन्तिम चरण तक पहुँची मगर पुरस्कार का फैसला किसी दूसरे के नाम पर हुआ। सच पूछे तो एक समय के बाद लेखक इन सारी बातों से ऊपर उठकर अपने लेखन में डूबा रहता है, लेकिन यह भी सच है कि आज के दौर में पुरस्कार अच्छे लेखन की कसौटी समझा जाने लगा है। आप उसे उचित समझें या ना समझें मगर साहित्य के सतह पर यही सच तैर रहा है फिलहाल।
उपन्यास अक्षयवट, ज़ीरो रोड, कुइंयाजान और पारिजात उपन्यास इलाहाबाद की पृष्ठभूमि से शुरू होती है। इसकी कोई ख़ास वजह?
मेरे चारों उपन्यास का विषय दरअसल वर्तमान समय है। विश्व स्तर पर हर देश इन प्रश्नों से जूझ रहा है। यह सवाल मुझे बेचैन किये थे। मैं अन्दर के संताप और व्याकुलता को काग़ज़ पर उतारना चाहती थी। उसका बयान कैसे करूँ? यह दिमागी छटपटाहट आखिर इस नुकते पर ख़त्म हुई कि आखिर वही सब कुछ तो हमारे देश में भी घट रहा है। इलाहाबाद पर मेरी पकड़ है तो क्यों न उन सारे सवालों को इलाहाबाद की ज़मीन से उठाऊं और इस फैसले के बाद कलम चल पड़ा। इन चारों उपन्यास से पहले मेरी दूसरी कहानी संग्रह ‘पत्थरगली’ के नाम से आ चुका था।
प्रत्येक रचना को लिखने का कोई न कोई उद्देश्य रहता है? पारिजात उपन्यास लिखने का….
हुसैनी ब्राह्मणों के बारे में जब मैंने कहीं पढ़ा तो चौंकी थी कि अरे हमारे रिश्ते कितने गहरे रहे हैं और अब तरह-तरह से दंगे और फसाद होकर विषय हमारे बीच फैलता जा रहा है। उपन्यास तो दो सौ पन्ने लिखा गया और खो भी गया था। उस समय उस पाण्डुलिपि में रोहनदत्त का चरित्रा उभरा नहीं था क्योंकि मेरे पास मालूमात का कोई स्रोत न था। काफी भटकने के बाद लखनऊ में बडे़ इमाम बाडे़ के पास गाईड ने मुझे मोहन मिकिन्स वालों से मिलवाया जो मोहियाल थे। उनके यहाँ रुकी उन्होंने किताबें दीं। दिल्ली में मोहियाल समाज के ऑफिस गई और रोहन के किरदार में जान पड़ गई। उसी के साथ कर्बला की जंग और मीर अनीस व मिज़ादबीर के मर्सिया से यह जुड़ गए। बहुत से लेखक व कवियों को जोड़ा सफी लखनवी का शेर भी कोट किया- ‘न ख़ामोश रहना मेरे हम सफीरों/जब आवाज़ दूँ तुम भी आवाज़ देना। मेरा उद्देश्य सिर्फ यह बताना था कि दुश्मनी अफवाहों के पीछे का एक सच है जो इन्सारी रिश्तों पर आधारित होकर धर्म, विचारधारा को पीछे छोड़ देता है।
पारिजात उपन्यास त्रिकोण प्रेम पर आधारित उपन्यास लगता है? इस पर आपकी राय….
बिल्कुल नहीं ! पारिजात में बहुत कुछ है, और जो सब से अहम् बात है वह है मानवीय सम्बन्ध। काज़िम की मौत ऐलेसन का व्यवहार बचपन के दोस्त रूही और रोहन को तोड़ गया। उनके बीच अवसाद, टूटन, दुख, आश्चर्य और ज़िन्दगी की ऐसी खुरदुरी सच्चाई थी जो उन्हें न जीने दे रही थी न मरने, ऐसी स्थिति में दोनों एक दूसरे के दुख को साँझा कर कम करना चाह रहे थे आखिर उनके परिवारों का अनोखा सम्बन्ध था जो प्रेम से आगे की बात कहता है। ऐसे रिश्तों को ‘उन्स’ का नाम दे सकते हैं फिर भी आप इसको त्रिकोण प्रेम कहकर वज़र हल्का न करे।
जारी…….

Language: Hindi
651 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
... और मैं भाग गया
... और मैं भाग गया
नंदलाल सिंह 'कांतिपति'
देश के वासी हैं
देश के वासी हैं
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
शिर्डी के साईं बाबा
शिर्डी के साईं बाबा
Sidhartha Mishra
जब कोई रिश्ता निभाती हूँ तो
जब कोई रिश्ता निभाती हूँ तो
Dr Manju Saini
अम्बेडकरवादी हाइकु / मुसाफ़िर बैठा
अम्बेडकरवादी हाइकु / मुसाफ़िर बैठा
Dr MusafiR BaithA
इक दूजे पर सब कुछ वारा हम भी पागल तुम भी पागल।
इक दूजे पर सब कुछ वारा हम भी पागल तुम भी पागल।
सत्य कुमार प्रेमी
“मंच पर निस्तब्धता,
“मंच पर निस्तब्धता,
*Author प्रणय प्रभात*
मुख्तलिफ होते हैं ज़माने में किरदार सभी।
मुख्तलिफ होते हैं ज़माने में किरदार सभी।
Phool gufran
दोस्त और दोस्ती
दोस्त और दोस्ती
Neeraj Agarwal
*नव-संसद की बढ़ा रहा है, शोभा शुभ सेंगोल (गीत)*
*नव-संसद की बढ़ा रहा है, शोभा शुभ सेंगोल (गीत)*
Ravi Prakash
बताओगे कैसे, जताओगे कैसे
बताओगे कैसे, जताओगे कैसे
Shweta Soni
किस क़दर
किस क़दर
हिमांशु Kulshrestha
घर के मसले | Ghar Ke Masle | मुक्तक
घर के मसले | Ghar Ke Masle | मुक्तक
Damodar Virmal | दामोदर विरमाल
खुद को इतना हंसाया है ना कि
खुद को इतना हंसाया है ना कि
Rekha khichi
@ खोज @
@ खोज @
Prashant Tiwari
💐प्रेम कौतुक-478💐
💐प्रेम कौतुक-478💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
2707.*पूर्णिका*
2707.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
हम ही हैं पहचान हमारी जाति हैं लोधी.
हम ही हैं पहचान हमारी जाति हैं लोधी.
Shyamsingh Lodhi (Tejpuriya)
कोई किसी का कहां हुआ है
कोई किसी का कहां हुआ है
Dr fauzia Naseem shad
रखें बड़े घर में सदा, मधुर सरल व्यवहार।
रखें बड़े घर में सदा, मधुर सरल व्यवहार।
आर.एस. 'प्रीतम'
आप आजाद हैं? कहीं आप जानवर तो नहीं हो गए, थोड़े पालतू थोड़े
आप आजाद हैं? कहीं आप जानवर तो नहीं हो गए, थोड़े पालतू थोड़े
Sanjay ' शून्य'
*****रामलला*****
*****रामलला*****
Kavita Chouhan
गीत नए गाने होंगे
गीत नए गाने होंगे
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
अपनी सोच का शब्द मत दो
अपनी सोच का शब्द मत दो
Mamta Singh Devaa
151…. सहयात्री (राधेश्यामी छंद)
151…. सहयात्री (राधेश्यामी छंद)
Rambali Mishra
मिलने के समय अक्सर ये दुविधा होती है
मिलने के समय अक्सर ये दुविधा होती है
Keshav kishor Kumar
जुदाई का एहसास
जुदाई का एहसास
प्रदीप कुमार गुप्ता
शीर्षक : पायजामा (लघुकथा)
शीर्षक : पायजामा (लघुकथा)
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
उगते हुए सूरज और ढलते हुए सूरज मैं अंतर सिर्फ समय का होता है
उगते हुए सूरज और ढलते हुए सूरज मैं अंतर सिर्फ समय का होता है
Annu Gurjar
बाल दिवस पर मेरी कविता
बाल दिवस पर मेरी कविता
Tarun Singh Pawar
Loading...