नारी ही नारायणी
हे नारी तू ही नारायणी इसका तुमको कब होगा एहसास l
इस नीच और कलुषित मानव को कब कराओगे इसका एहसास ll
तुझे सहित तेरे बच्चे पर यह करते अपना बल प्रयोग l
तुम कब तक चुप रहकर झेलोगे इसका बल प्रयोग ll
शील हरण करने में भी इन कुंठित को ना आती शर्म l
तुम दुर्गा का रूप धारण कर करती क्यों नहीं इसका अंत ll
इसके घृणित सोच है इसको देना होगा करारा जवाब l
तुम चंडी का रूप धारण कर दे दो इसका सीधा जवाब ll
वेद पुराण के पन्नों पर लिखा नारी तेरा गुणगान l
महिषासुर आदि दानव को पहुंचाया तुमने खुद सुरधाम ll
धैर्य धारण कोई आपसे सीखे कैसे लंकापुरी मेंरहे दानव के बीच l
अपनी अस्मिता को बचाकर रखा उस अधम दानव के बीचll
जरूरत पड़ी तो अपना मान सर्वोपरि रखा l
उस चीरहरण करने वाले हाथों का रक्त पान तक तुमने किया ll
नारी अबला नहीं यह तो है धरा की शान l
इससे ही तुम जन्मे हो हे कलुषित और कुंठा के खान ll
उस बच्चे ने क्या बिगाड़ा होगा तेरा जो जानता नहीं था तेरा नाम
अपने इस कुंठित दिमाग को क्यों प्रयोग किया तुमने हैवान ll
बल का ही प्रयोग करना था अपनी बराबरी तो ढूंढ लेता l
फिर तेरा भी जरासंध जैसा जरा और संघ अलग अलग होता ll
पता नहीं तेरे जैसा अधम कैसे पैदा होता है
या तो बीज या फिर पालन-पोषण हीं गंदा है ll
तुम्हें कोई अधिकार नहीं कि तुम सामान्य जीवन जी पाओ l
तुम जैसे का तो बस एक इलाज चौराहे पर ही जिंदा जलाए जाओ ll
अब कलयुग के नारी से बस एक निवेदन अपने को पहचानो l
स्वयं हाथों से खड़ग उठाकर शील हरण होने से बचाओ ll
तुम तबके द्रोपदी नहीं की पूरी सेना होगी तैयार l
अब स्वयं ही दुर्योधन दुशासन का जंघा तोड़ना तुमको है आज ll
शास्त्र उठाओ हे सीता अब रामसेतु की जरूरत नहीं l
रावण तो अब घर घर बैठा अब उसको छोड़ना नहीं ll
तुम सबला हो तुम वीरांगना तुम ही हो दुर्गा के रूप l
त्रिशूल उठा अब निकल पड़ो तुम ढूंढो एक एक महिषासुर lll
शंकर आँजणा नवापुर धवेचा
बागोड़ा जालोर-343032