Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Sep 2017 · 4 min read

नारी सशक्तिकरण एवं नारी संस्कार

नारी सशक्तिकरण व नारी संस्कार

कालचक्र अबाध गति से चल रहा है । पौराणिक कालों मे पूर्वजो की श्रंखला मे आदि पुरुष मनु एवम शतरूपा का वर्णन है । जिनसे इस सृष्टि की रचना हुई है । यह तो स्पष्ट है की सृष्टि की संरचना मे नर –मादा जाति का ही योगदान रहा है । जीवन के लक्षण जैसे आहार ,उत्सर्जन , विचरण, श्वसन व काम क्रिया को प्रधान लक्षण माना गया है । वनस्पति या जीव इन लक्षणो के आधार पर ही जीवित या मृत माना जाता है ।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । वह समाज से अलग नहीं रह सकता है । समाज की एक मर्यादा ,एक परंपरा होती है । जातिगत व्यवस्था होती है । शिक्षित –अशिक्षित सभी व्यक्ति इसेजानते व मानते हैं । इसका पालन करते हैं । इसी समाज मे ईश्वर की परम श्रेष्ठ रचना स्त्री का दर्जा अत्यंत उच्च माना गया है । उसे देवी कहा गया है । मातृ रूप मे उसे रक्षक ,पालक व सुखसमृद्धि की दाता कहा गया है । वर्तमान समय मे भी नारी का स्थान पुरुष के समकक्ष माना गया है । इसे वैधानिक मान्यता प्राप्त है ।
शैशव काल से ही अपने सुकोमल व्योहार से स्वजनो का हृदय जीतने वाली कन्या घर की रौनक होती है । अपनी त्याग भावना , मेहनत ,लगन के बल पर इन कन्याओ ने घर –घर का मान बढ़ाया है । वही विपरीत परिस्थितियो मे माँ बाप का मनोबल बढ़ाया है , भाइयो को सहारा दिया है । उनका मार्गदर्शन किया है । उन्हे अच्छे बुरे की पहचान व सही मार्ग चुनने का रास्ता दिखाया है । सामाजिक परम्पराओ का पालन करते हुए समाज को नई दिशा देने की कोशिश की है ।
यह स्वाभाविक है की स्त्री –पुरुष मे आकर्षण होता है । परंतु सामाजिक दायरों मे रह कर अपने ख्वाबो के राजकुमार को चुनने का अधिकार उन्हे है । यह व्यवस्था कुछ ही समाज मे सीमित है । कन्या जब यौवन की दहलीज पर कदम रखती है तो उसे शारीरिक ,मानसिक एवम विचारो मे विकास की झलक मिलती है । संस्कारो का पुट भी मिलता है तो अल्हड्पन की झलक भी मिलती है । अपनी हदों मे रहते हुए माता पिता उसे शिक्षित करते हैं । अपने पैरों पर खड़े करने की कोशिश करते हैं । इस समाज मे अच्छे –बुरे ,सज्जन –दुर्जन , मृदुभाषी –कटुभाषी , ईर्ष्यालु –दयालु , खिल्ली उड़ाने वाले आलोचक –सहानुभूति रखने सभी तरह के मनुष्य विधमान हैं ।
मनुष्य के संस्कारो का निर्माण उनके पालन –पोषण व शिक्षा –दीक्षा पर ,व घर के माहौल पर निर्भर करता है । उनकी सकारात्मक –नकारात्मक सोच विचारो पर निर्भर करता है । कुछ व्यक्ति स्वार्थी ,आत्मकेंद्रित होते है वे केवल अपनी ही सोच रखते हैं । कुछ दूसरों के बारे मे न केवल अच्छे विचार रखते हैं , बल्कि उनकी देखभाल भी करते है । सामाजिक दृष्टिकोण इसी पर निर्भर करता है ।
नारी घरजनित संस्कारो के माध्यम से इस समाज का अंग है । सुग्राह्य एवम सुकोमल भावनाओ का पुंज है । उसे पल्लवित व पुष्पित होने दिया जाए ना कि उसकी सुकोमल भावनाओ परकुठारघात किया जाए । स्त्री के भाव इतने कोमल होते हैं कि जरा सी ठोकर या चोट वो जीवन भर याद रखती है , चाहे ठुकराने वाला उसका पिता या भ्राता , पति या अन्य कोई भी हो । ताउम्र टीस सहने वाली नारी किसी अनहोनी ,दुर्घटना कि आशंका से ही घबरा जाती है । जीवन का मार्ग बदल सकती है । यदि जीवन के किसी मोड पर कोई दुर्घटना जैसे बलात्कार , तेजाब फेकना या हमला करना आदि हो जाती है तो स्त्री का जीवन नर्क बन जाता है । सुकोमल हृदया नारी कुंठित ,भयभीत हो जाती है । उसका सामाजिक विकास अवरुद्ध हो जाता है । नित्य नए व्यंग बाण उसके कोमल आहत भावनाओ पर तुषारपात करते हैं । उसका खिला गौरवान्वित चेहरा मुरझा जाता है ,रह-रह कर वो वाकया जब उसे याद आता है तो वह तिल –तिल एक दिन मे सौ मौत मरती है । माता –पिता भाई बहन तक इस व्यथा का दर्द कम नहीं कर सकते हैं । सहानुभूति का हर शब्द ऐसे चुभता है जैसे उसे शर शैया पर सुला दिया गया है । कलंक व कटुता उसके जीवन का हिस्सा बन जाते हैं ।
कालचक्र तेजी से घूमता है स्त्री का स्वभाव एकतेजस्वी स्वाभिमानी स्वभाव है । यदि स्त्री इस अंधकार रूपी काली रात से लड़ कर प्रकाश रूपी जिंदगी जीना चाहती है तो उसे अपने अधिकारो के लिए लड़ना होगा । संघर्ष को अपनाना होगा । हृदय कि आग को जलाए रखना होगा । अपनी अस्मिता व अस्तित्व कि लड़ाई कोप्रत्येक नारीसमाज की लड़ाई मान कर लड़ना होगा । उसके एक कदम आगे बढ्ने से सौ कदम उसके साथ होंगे । जीवन के इस अभिनव प्रयोग मे न्याय ,कर्म व समाज का भी अभूत पूर्व योगदान होगा । जीवंत समाज की यही मर्यादा है । अच्छाई की बुराई पर यही जीत है । यही नारी का दैवीय गुण है ।

डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव

Language: Hindi
Tag: लेख
3 Likes · 424 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
View all
You may also like:
हमारी सोच
हमारी सोच
Neeraj Agarwal
गांव अच्छे हैं।
गांव अच्छे हैं।
Amrit Lal
प्रेम की साधना (एक सच्ची प्रेमकथा पर आधारित)
प्रेम की साधना (एक सच्ची प्रेमकथा पर आधारित)
दुष्यन्त 'बाबा'
आग लगाते लोग
आग लगाते लोग
DR. Kaushal Kishor Shrivastava
अर्थ का अनर्थ
अर्थ का अनर्थ
Dr. Pradeep Kumar Sharma
आसमाँ के परिंदे
आसमाँ के परिंदे
VINOD CHAUHAN
पहाड़ों की हंसी ठिठोली
पहाड़ों की हंसी ठिठोली
Shankar N aanjna
भोजपुरीया Rap (2)
भोजपुरीया Rap (2)
Nishant prakhar
हाथ में कलम और मन में ख्याल
हाथ में कलम और मन में ख्याल
Sonu sugandh
सुप्रभातं
सुप्रभातं
Dr Archana Gupta
पुष्पों की यदि चाह हृदय में, कण्टक बोना उचित नहीं है।
पुष्पों की यदि चाह हृदय में, कण्टक बोना उचित नहीं है।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
*कर्मफल सिद्धांत*
*कर्मफल सिद्धांत*
Shashi kala vyas
हटा 370 धारा
हटा 370 धारा
लक्ष्मी सिंह
शिखर ब्रह्म पर सबका हक है
शिखर ब्रह्म पर सबका हक है
मनोज कर्ण
जिस समाज में आप पैदा हुए उस समाज ने आपको कितनी स्वंत्रता दी
जिस समाज में आप पैदा हुए उस समाज ने आपको कितनी स्वंत्रता दी
Utkarsh Dubey “Kokil”
ONR WAY LOVE
ONR WAY LOVE
Sneha Deepti Singh
आईने से बस ये ही बात करता हूँ,
आईने से बस ये ही बात करता हूँ,
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
हॉं और ना
हॉं और ना
Dr. Kishan tandon kranti
क्या आप उन्हीं में से एक हैं
क्या आप उन्हीं में से एक हैं
ruby kumari
पुरातत्वविद
पुरातत्वविद
Kunal Prashant
*वो खफ़ा  हम  से इस कदर*
*वो खफ़ा हम से इस कदर*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
धाराओं में वक़्त की, वक़्त भी बहता जाएगा।
धाराओं में वक़्त की, वक़्त भी बहता जाएगा।
Manisha Manjari
मुक्तक
मुक्तक
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
24/250. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
24/250. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
*सीता जी : छह दोहे*
*सीता जी : छह दोहे*
Ravi Prakash
मैं बदलना अगर नहीं चाहूँ
मैं बदलना अगर नहीं चाहूँ
Dr fauzia Naseem shad
कभी न खत्म होने वाला यह समय
कभी न खत्म होने वाला यह समय
प्रेमदास वसु सुरेखा
चाय बस चाय हैं कोई शराब थोड़ी है।
चाय बस चाय हैं कोई शराब थोड़ी है।
Vishal babu (vishu)
दादा की मूँछ
दादा की मूँछ
Dr Nisha nandini Bhartiya
विदाई
विदाई
Aman Sinha
Loading...