नारी का सम्मान होना चाहिए!!
विषय- नारी के प्रति सामाजिक विषमता
विधा- गीत (मुक्तछंद)
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【मुखड़ा】
कुप्रथा कुरीतियों का ,अंत होना चाहिये।
इस जहाँ में नारी का , सम्मान होना चाहिये।
[अंतरा]
माँ बने बेटी बने या, हो किसी की भार्या।
दुर्विचारों से हताहत, हर युगों में नारियां।।
हे प्रभु सुन पीर अब, दुखान्त होना चाहिए।
कुप्रथा कुरीतियों का, अंत होना चाहिए।
हो सुहागिन या हो बेवा, मात ही भगवान है।
माँ हो जग में पास जिनके, एक वह धनवान है।
मात के बलिदान का न, रात होना चाहिये।
कुप्रथा कुरीतियों का अंत होना चाहते।।
इस धरा पर है जो जीवन, माँ तेरा परताप है।
पुण्य का फल माँ धरा पर, माँ नहीं कोई शाप है।
अपशकुन कह कर कभी न, घात होना चाहिये।
कुप्रथा कुरीतियों का अंत होना चाहिये।
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मैं पं.संजीव शुक्ल “सचिन” घोषित करता हूँ कि मेरे द्वारा प्रेषित रचना मौलिक स्वरचित अप्रकाशित अप्रेषित है।
(पं.संजीव शुक्ल “सचिन”)