नारियों से ही सदा, संसार को मिलती गति
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मुक्तक द्वै
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(१)
नारियों से ही सदा, संसार को मिलती गति।
नारि के सम्मान में ,सबकी छुपी है उन्नति।।
उस देश व भूखंड का शीघ्र ही होता पतन,
नारी की जिस देश में होती है नित दुर्गति।।
(२)
सब कहते हैं मैं अबला हूँ यह मुझको मंज़ूर नहीं ।
घर में रहना सब कुछ सहना ये कोई दस्तूर नहीं ।
मैं अम्मा की प्यारी बिटिया उसका हाथ बॅटाती हूँ,
मैं नारी, बेचारी हूँ क्या? दुनिया थोड़ी क्रूर नहीं।
?अटल मुरादाबादी ?