नारा है यह फ़िज़ूल … (ग़ज़ल )
बेटी बचाओ ,बेटी पढाओ , नारा है यह फ़िज़ूल,
नारा ही है न ,ऐसे तो कई बजते रहते है बिगुल .
महज नारे बाजी से कोई बात नहीं बनती ,जनाब !
थक गए सुन-सुन कर नारों का बेवजह शोरगुल .
बेटी बचायेंगे कैसे ? और बेटी पढ़ाएंगे तो कैसे ?
आपके समाज में एक सिरे से इंसानियत है गुल .
इधर कुछ लोगों में अन्धविश्वास ,रूढ़िवादिता है ,
और दूसरी और कुछ लोगों में शराफत है गुल .
ना खुदा का खौफ है मर्दों में न ज़माने की शर्म ,
और कानून है की थोथा चना ,उसमें ताकत है गुल .
लव-जिहाद का खंजर हो या दहेज़ -प्रथा की आग,
किसी भी सूरत में बेटियों के वास्ते जीने की आज़ादी है गुल.
अब आप बताएं क्या कर सकते हैं हमारी बेटिओं के लिए ?
यही मुनासिब वक़्त ,नारों को छोड़कर कीजिये कुछ अम्ल .
बेटिओं को बचाएं,उन्हें पढ़ाये और हिफाज़त भी दें ,
सम्मान,अधिकार औ आज़ादी देकर खिलाएं इन्साफ का गुल .
वर्ना यूँ ही मत बना कीजिये आप मियां मिठ्ठू ,
और ना ही बनाईये अपनी झूठी तारीफों के हवाई पूल .