नाजुक डोर रिश्तों की
नाजुक डोर रिश्तों की
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कुछ रिश्ते साख बचा देते।
कुछ खुद को ही सजा देते।
पलते साँप जो आस्तीन में-
रिश्तों में दाग लगा देते।
कुछ जां देकर भी दुनिया में-
रिश्तों का मोल चुका देते।
नाजुक सी डोर है रिश्तों की-
कैसे हम उन्हें बता देते।
कुछ शकुनि जैसे नामुराद-
रिश्तों को आग लगा देते।
रिश्तों में दाग लगाते जो-
उनको हम काश! सजा देते।
‘सचिन’ फिदरत कुछ ऐसी है
मरते पर रिश्ते निभा देते।
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✍✍ पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’