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21 Apr 2020 · 1 min read

नाकाम का न करें तिरिस्कार

मुझे बीता हुआ कल
याद आता है,
मेरी नादानियाँ मुझे
बताता है।
मैंने नासमझी में किये थे-
बड़े कमाल।
धोतियों को फाड़ कर,
बना दिये थे सैकड़ों रूमाल।
कुछ खास करने के चक्कर में,
कागजों को फाड़ फाड़ कर-
लगा देता था ढेर।
लेकिन नहीं हो पाया था –
कागज़ी शेर।
मेरी नाकामियों में ही था,
मेरी कामयाबियों का राज़।
चीथड़ों-काग़ज़ों के ढेर से,
हो सका हूँ सफल आज।
महोदय, नाकामियों को,
कामयाबी का बीज जानिये।
किसी नाकाम का न करें तिरिस्कार,
भविष्य का श्रेष्ठ मान कर-
उसको सन्मानिये।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 188 Views
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