नाकाम का न करें तिरिस्कार
मुझे बीता हुआ कल
याद आता है,
मेरी नादानियाँ मुझे
बताता है।
मैंने नासमझी में किये थे-
बड़े कमाल।
धोतियों को फाड़ कर,
बना दिये थे सैकड़ों रूमाल।
कुछ खास करने के चक्कर में,
कागजों को फाड़ फाड़ कर-
लगा देता था ढेर।
लेकिन नहीं हो पाया था –
कागज़ी शेर।
मेरी नाकामियों में ही था,
मेरी कामयाबियों का राज़।
चीथड़ों-काग़ज़ों के ढेर से,
हो सका हूँ सफल आज।
महोदय, नाकामियों को,
कामयाबी का बीज जानिये।
किसी नाकाम का न करें तिरिस्कार,
भविष्य का श्रेष्ठ मान कर-
उसको सन्मानिये।
जयन्ती प्रसाद शर्मा