नशाखोरी अभिशाप है
नशाखोरी अभिशाप है
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मिट रहा है युवा पीढ़ी आज मेरे देश का,
नशाखोरी बन रहा दुर्भाग्य मेरे देश का।
शर्म आँखों की मिटी है
मुख पे है गाली सजा,
कर्म से हैं भागते
पग जुर्म पथ पर है चला।
सोचता हूँ किस तरह होगा भला इस देश का,
मिट रहा है युवा पीढ़ी आज मेरे देश का।
खींचते सिगरेट जैसे
इसमें इनकी शान है,
गुटखा, तम्बाकू,बीड़ी से
मिलती इनको जान है।
कैसे इनको मैं बताऊँ पथ है यह दुर्भाग्य का,
मिट रहा है युवा पीढ़ी आज मेरे देश का।
गर्क में है भाग्य इनका
मौत से रिश्ता जुड़ा,
तेज मस्तक का मीटा है
मुख भी है पीला पड़ा।
आज धुंए में समाहित है खड़ा हर नौजवान,
मिट रहा है युवा पीढ़ी आज मेरे देश का।
नशाखोरी आज जैसे
लगता इनका कर्म है,
मदिरा सेवन बन गया
जैसे इनका धर्म है।
आज इसको मान बैठे पथ मिला सौभाग्य का,
मिट रहा है युवा पीढ़ी आज मेरे देश का।
क्या करूँ, कैसे बताऊँ
इनको इसका फलसफा,
इस नशे से ना मिलेगी
इनको कोई भी वफा।
कैसे कर मोड़ू मैं इनका रास्ते दुर्भाग्य का,
मिट रहा है युवा पीढ़ी आज मेरे देश का।
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✍✍पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार
9560335952