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17 Sep 2019 · 2 min read

नवोदय अधूरी प्रेम कहानी

यारों आज सुनाता हूँ मैं नवोदय की अधूरी प्रेम कहानी
जिस भी नवोदियन पर ठुकती हो तो बताओ बारी बारी
बड़े सुहाने लगते हैं अब भी नवोदय में बीते दिन पुराने
याद बहुत आते हैं वो आधे अधूरे बचपन के अफसाने
मै नवोदियन देवानंद था वो थी नवोदियन माला सिन्हा
वो सुन्दर छैल छबीली थी मैं पतला लंबा छैल छबीला
मै त्रेता युग का विश्वामित्र , वो स्वर्ग की अप्सरा मेनका
वो चाँद चमकता पूनम का मैं अंबर का ध्रुव तारा सा
मैं शिव सदन का कमांडर था वो लक्ष्मी सदन की बाला
मैं गायक बहुत सुरीला था वो थी हरियाणवी नृत्यांगना
वो बैडमिंटन खेला करती थीं मैं टेनिस का था सहजादा
वो कक्षा की मोनिटर थी मैं पढाई में अव्वल आता था
वो अच्छी भाषण वक्ता थी मै़ वाद विवाद संवादी था
वो आगे बैठा करती थी मैं मध्यम पंक्ति बीच में बैठता
नजरों के तीर ठीक ठिकाने पर खूब वहीं से था लगाता
मंद मंद मीठी मुस्कान उसकी मुझे दीवाना बनाती थी
बहाना बना के किसी मकसद था मुझसे बतियाती थी
पर जो वो कहना चाहती थी वो कभी ना कह पाती थी
जो मैं कहना चाहता था वो बीच अधर फँस जाता था
शिक्षक,सहपाठी की नजरों से बचकर ताकते रहते थे
वो मेरी पर्यायवाची थी मुझे उसके नाम से जानते थे
कोपी,किताब,हाथ पर नाम कभी लिखते थे मिटाते थे
कभी कभार शिक्षक की पैनी नजरों में फँस जाते थे
नवोदय में लगी कतारों में हम उसी को ढूँढा करते थे
उनके नहीं मिलने पर कुंठित,हताश हो जाया करते थे
भोजनालय में भी कोण बना कर के बैठा करते थे
खुद की थाली खाली हो जाती फिर भी बैठा करते थे
वो जन्माष्टमी पर वर्ती थी मै होता वर्ती नहीं चर्ती था
उसके हिस्से का उस दिन खाना खाने का हक मेरा था
जन्माष्टमी कृष्ण लीला में खूब सपने देखा करते थे
होली के घने रंगों से कल्पना में ही रंग दिया करते थे
खेलों के मैदानों में नजरे़ नजरों को ढूँढा करती थी
सच्चा झूठा बहाने बनाकर सानिध्य ढूँढा करती थी
समय बीतता बीत गया दिल. की दिल मे रह गई थी
अंतिम विदाई पार्टी में ही यारो प्रीत अधूरी रह गई थी
नम आँखों से पानी से नम आँखों को दी विदाई थी
अधूरी अनसुलझी अनकही प्रेमकहानी दफनाई थी
जय नवोदियन जय नवोदय

सुखविंद्र सिंह मनसीरत

Language: Hindi
206 Views
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