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12 Jul 2017 · 1 min read

नयें युग का बदलाव

नया युग सा आया हैं ,जर्रा इसकी बौछारें देखना।
हाल- ए- हाल बदलने से देश का आईना देखना।।

नया युग सा आया हैं, जर्रा अब मिजाज देखना।
रंग-ए -रुख आज शौहरत का तुम ताज देखना।।

बंदिशगी नहीं फिर भी तुम तो लिहाज नहीं रखते।
ये आजादी कैसी अपने देश में विदेशी बाजार चलते ।।

राह तुम लेलों पर इसकी तुम ना ही डगर बदलों।
अपनें -ए- दिलों में थोडा स्वदेश ही मगर रखलों।।

इस युग में संस्कृति का थोडा सा ही ख्याल रखलों।
नया युग कहकर देश की आन -शान ना ही बदलों।।

युग की रंग-शाखत सब सी बदल दी इस आरजू में ।
जमाना में बदलन में बचा न कोई बंध अब बाजु में।।

युग लौटने की मन्नत किस्से करू जरा तुम बता दों।
ऐ – यारों तुम न बदलकर मुझे तो वहीं युग लौटा दो।।

बदलने चलें रण कों जीवन की इस किरनार पर।
लिहाज की इज्जत ही तो सदा रखी अपने ऊपर।।

अजीक्कत सी दिक्कत हैं मुझे यारों नयें श्रृंगार पर।
क्योंकी इसकी प्रतिक्रिया सदा देशको देती रही चक्कर।।।

रणजीत सिंह “रणदेव” चारण
मुण्डकोशियां
7300174627

Language: Hindi
761 Views
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