नया वर्ष
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चाँद के दिन लदे,सूरज उतरेगा अब सब के आंगन में।
लाल-पीली रौशनी से लदा चमकेगा सब के प्रांगण में।
हमारे आकांक्षाओं के यादों के शव पर खड़ा होगा सूरज।
असफलताओं के सारे दुखों से कुतर बौना बनता सूरज।
दुहराने रास्ते को ‘चले हुए’,सफर पर निकलेंगे हम और तुम।
नयापन चेहरों पर चुपड़ कर नई मुस्कुराहटों से लैस चमचम।
पुराने सोच के नये जैकेट पहने नई संस्कृति के वादे दुहराते।
गढ़ेंगे नई सभ्यता के ध्वज लहराकर नई ध्वनि में गाते-गाते।
नये उमंग और उत्साह में भी पुराना दर्द रहेगा छलकता।
अस्वच्छ मन के पुराने सड़ांध सारी नई बातों में गमकता।
व्यभिचार के कब्र पर फूल की जगह पश्चाताप के आंसू चढ़ाकर।
पग बढ़ायेंगे आगे,अगले अनाचार व कुविचार को ऐसा प्रण थमाकर।
नई आशाओं को दुल्हन की तरह सजाकर निकालेंगे ब्याह का बारात।
नई आकांक्षाओं को नये रंगों में रँग नये परिधानों का देंगे सौगात।
संघर्ष की पुरानी पीड़ाओं को दफन करने का संकल्प ही नया है वर्ष।
गये वर्ष के अपमान से असहज होते मन को नया मान देना है हर्ष।
तत्पर रहेगा उलीचने को दुखते दु:ख के दोपहर हमारा अब दृढ निश्चय।
कल के आघात से दो–दो हाथ करने की लालसा की तीव्रता ही है विजय।
कल के पराजय से चिढ़े मन में विजय की भावना होना है उत्कर्ष।
नये वर्ष के इस नये उद्यम का ही होता आया है नाम नया संघर्ष।
उद्यम,पराक्रम,शौर्य,साहस,विवेक;लोभ,लिप्सा,निर्विचार-कर्म पर भारी।
नये वर्ष को करे उद्दीप्त और सुसंस्कृत,प्रभु से यही हो विनती हमारी।
arun कुमार प्रसाद