” ———————————- —— नयना लड़े पड़े हैं ” !!
रूप रंग की छांव घनेरी , नख़रे नाज़ बड़े हैं !
हम तो अपने आप को भूले , नयना लड़े पड़े हैं !!
पावस की बूंदों ने छूक़र , तन मन लहराया है !
झलक तुम्हारे पाने में यों , छाते कई उड़े हैं !!
इतराये फूलोँ ने तेरी , जमकर की अगवानी !
आज यहां गुलज़ार को देखो , कैसे होश उड़े हैं !!
दिल के राज़ बड़े गहरे हैं , कब आंखों से छलके !
मौन प्रतीक्षा में छुपकर , हम तो यहां खड़े हैं !!
मुस्कानों के तीर चलाकर , हलचल पैदा कर दी !
बेबस होकर सरे राह यों , कई शिकार पड़े हैं !!
आज अदा में दिखता है कहीं , छुपा हुआ ईशारा !
उम्मीदों की डोर को बांधे , हम तो यहीं अड़े हैं !!
रची बसी होठों पर साज़िश , अँखियाँ करे शरारत !
चुनरी ने ले ली अँगड़ाई , हम मदहोश पड़े हैं !!
बृज व्यास