Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
14 Oct 2018 · 3 min read

नन्हे कंधों पर भारी बोझ

नन्हे कंधों पर भारी बोझ
आधुनिक युग में भले ही हम प्रतिस्पर्धा करके पश्चिमी देशों की शिक्षा व्यवस्था से आगे निकलने का प्रयास क्यों न कर रहे हो लेकिन हमें वर्तमान पीढ़ी के मासूमों के बचपन के साथ खिलवाड़ नहीं करनी चाहिए । आज एक दो व तीन साल का बच्चा खिलौनों से खेलने के बजाय भारी भरकम बैग लेकर स्कूल में जाता है । उस बच्चे की दशा एक कच्ची मिट्टी के घड़े कैसे होती है जिसमें इतना वजन उठाने की ताकत भी नहीं होती, लेकिन इसके बावजूद भी वह माता-पिता के दबाव के चलते हल्के शरीर के पीछे दश किलो तक का वजन उठाने के लिए मजबूर है । दोष उस माता-पिता का नहीं है जिसने उसे यह बैग थमाया बल्कि उस प्रतिस्पर्धा के दौर का है जिसमें माता-पिता अपने बच्चे की शैक्षिक नींव को समय से पहले ही मजबूत करना चाहते हैं । वर्तमान दौर में अधिकतर माता-पिता नौकरी पेशे में इतने व्यस्त है कि वो धन कमाने की चाहत में परिवार के बाकी सदस्यों से बहुत दूर शहरों में जाकर बस गए हैं । बच्चे को परिवार के सदस्यों , दादा-दादी, चाचा-चाची, भाई-बहन व अन्य लोगों के साथ खेलने और प्यार जताने का मौका ही नहीं मिल पाता । यह उस के सर्वांगीण विकास न होने का एक मुख्य कारण है । वह बच्चा अकेलेपन में या तो टैलिविजन कार्यक्रमों या फिर छोटे बच्चों के लिए बने विशेष स्कूलों में स्वयं को तन्हा महसूस करता है । आजकल गली- मोहल्लों खोले गए कई स्कूलों द्वारा अभिभावकों को यह ऑफर दिया जाता है कि वो उनके बच्चे को उस समय तक रखने के लिए तैयार है जिस समय तक माता-पिता नौकरी करके घर में लौट आएं । बच्चा अपना बचपन स्कूल के बाद घर की चारदीवारी में अकेले रहकर बिताता है। प्यार, दुलार, शरारत , जैसे वह बच्चा भूल ही गया है। शिक्षा के मायने उसे जल्दी प्रारंभ करने से नहीं है बल्कि उसे एक निश्चित समय में बच्चे की मानसिक परिपक्वता के आधार पर दिए जाने से हैं। आजकल ज्यादातर स्कूल शिक्षा के नाम पर 12 से 15 पुस्तकों की एक सूची माता-पिता को थमा देते हैं जिनकी कीमत ₹2000 से लेकर ₹4000 तक होती है । शिक्षा पहले भी गुणवत्ता पूर्वक थी और पहले भी इन सभी पुस्तकों का सार केवल उस छोटी सी किताब या कायदे में होता था जिसकी कीमत केवल 5 से 10 रुपये हुआ करती थी । जिस किताब के एक पेज पर गिनती, दूसरे पर वर्णमाला, तीसरे पेज पर अंग्रेजी के अल्फाबेट व छोटी-छोटी कहानियां होती थी । आज से लगभग बीस वर्ष पहले भी अध्यापक, कक्षा एक में ही वो सब ज्ञान दे देते थे जो आज प्ले स्कूल, प्री नर्सरी, नर्सरी ,व केजी जैसी 4 कक्षाओं में भारी फीस ले कर दिया जाता है । शिक्षा सही मायने में उस आयु में ही प्रारंभ होती है जब एक बच्चा दूसरों की बात को अच्छी तरह से समझ सके । जिस आयु में बच्चा अपनी भूख – प्यास व अन्य आवश्यकताओं को ही नहीं बता सकता भला वह स्कूल के द्वारा बनाए गए नियमों व पाठ्यक्रम को कैसे समझेगा । वर्तमान शिक्षा बच्चों से उनका बचपन छीन रही है । यह बच्चों की शिक्षा न होकर केवल उन से दूरी बनाने और संस्थानों द्वारा भारी-भरकम कीमत वसूल करने का एक माध्यम बन गई है । हमें अभिभावकों की जागरूकता के साथ- साथ उन सभी संस्थानों से भी अपील करनी चाहिए जो वर्तमान शिक्षा को बच्चों पर थोप रहे हैं । शिक्षा सरल एवं सुगम होनी चाहिए। शिक्षा बच्चों के कंधों व मन पर बढ़ रहे तनाव को कम करके उन्हें अपना बचपन खुशी पूर्वक बिताने देने वाली होनी चाहिए । सही समय पर दी गई शिक्षा से बच्चों का शारीरिक, मानसिक व बौद्धिक विकास उन बच्चों की अपेक्षा अधिक होता है जो अपना बचपन पुस्तकों के वजन व माता- पिता के दबाव मे बंद चारदीवारों में बिताते हैं । स्वरचित लेख के माध्यम से मैं सभी प्रबुद्ध नागरिकों व अभिभावकों से निवेदन करता हूं कि वो छोटे बच्चों के कन्धों से इस बोझ को कम करें और उन्हें अपना बचपन खुशी पूर्वक बिताने में सहयोग देंवें।

Language: Hindi
Tag: लेख
373 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
कुछ ख़त्म करना भी जरूरी था,
कुछ ख़त्म करना भी जरूरी था,
पूर्वार्थ
आवारगी
आवारगी
DR ARUN KUMAR SHASTRI
तुम रंगदारी से भले ही,
तुम रंगदारी से भले ही,
Dr. Man Mohan Krishna
मोहब्बत जताई गई, इश्क फरमाया गया
मोहब्बत जताई गई, इश्क फरमाया गया
Kumar lalit
* सुन्दर झुरमुट बांस के *
* सुन्दर झुरमुट बांस के *
surenderpal vaidya
राष्ट्र निर्माण को जीवन का उद्देश्य बनाया था
राष्ट्र निर्माण को जीवन का उद्देश्य बनाया था
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
*सेवानिवृत्ति*
*सेवानिवृत्ति*
पंकज कुमार कर्ण
खेल संग सगवारी पिचकारी
खेल संग सगवारी पिचकारी
Ranjeet kumar patre
संतोष करना ही आत्मा
संतोष करना ही आत्मा
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
प्यारा-प्यारा है यह पंछी
प्यारा-प्यारा है यह पंछी
Suryakant Dwivedi
जीवन साथी ओ मेरे यार
जीवन साथी ओ मेरे यार
gurudeenverma198
संसद के नए भवन से
संसद के नए भवन से
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
*भाग्य से मिलते सदा, संयोग और वियोग हैं (मुक्तक)*
*भाग्य से मिलते सदा, संयोग और वियोग हैं (मुक्तक)*
Ravi Prakash
हमदम का साथ💕🤝
हमदम का साथ💕🤝
डॉ० रोहित कौशिक
प्रेम और पुष्प, होता है सो होता है, जिस तरह पुष्प को जहां भी
प्रेम और पुष्प, होता है सो होता है, जिस तरह पुष्प को जहां भी
Sanjay ' शून्य'
फितरत दुनिया की...
फितरत दुनिया की...
डॉ.सीमा अग्रवाल
कुंडलिया छंद
कुंडलिया छंद
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
मात-पिता केँ
मात-पिता केँ
DrLakshman Jha Parimal
दो शे'र ( अशआर)
दो शे'र ( अशआर)
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
🌺आलस्य🌺
🌺आलस्य🌺
सुरेश अजगल्ले 'इन्द्र '
इश्क़—ए—काशी
इश्क़—ए—काशी
Astuti Kumari
डाकू आ सांसद फूलन देवी।
डाकू आ सांसद फूलन देवी।
Acharya Rama Nand Mandal
लतियाते रहिये
लतियाते रहिये
विजय कुमार नामदेव
!! शब्द !!
!! शब्द !!
Akash Yadav
हम कोई भी कार्य करें
हम कोई भी कार्य करें
Swami Ganganiya
*अज्ञानी की कलम*
*अज्ञानी की कलम*
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
कतरनों सा बिखरा हुआ, तन यहां
कतरनों सा बिखरा हुआ, तन यहां
Pramila sultan
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
Dr Archana Gupta
💐प्रेम कौतुक-177💐
💐प्रेम कौतुक-177💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
★उसकी यादों का साया★
★उसकी यादों का साया★
★ IPS KAMAL THAKUR ★
Loading...