नन्ही गौरैया
शीर्षक- नन्ही गौरैया
अरे! सुनो भाई
कोई तो सुनो!
छोटी सी गौरैया चिड़िया की पुकार
दब कर मर रही है गगनचुंबी इमारतों के पीछे
नहीं दिखती अब
दरवाजों की चौखट पर
खिड़कियों की जाली से भी
नहीं झांकती,
मेरे बचपन के सुहाने दिनों में
भोर होते ही
रोशनदान में से
चीं चीं चीं कर मुझे उठाती थी
पहला मधुर स्वर उसका ही होता था
हम दोनों एक दूसरे को
देखते बातें करते
और खुश हो जाते थे
फिर वह मेरे साथ-साथ
आँगन में आ जाती
मेरे हर क्रिया कलाप में
मेरे साथ रहती
स्कूल के टिफिन की रोटी से
हम दोनों आधा-आधा
बाँट कर खाते
स्कूल के रास्ते में भी
मैं उसे साथ पाता
कभी-कभी तो कक्षा में आकर
हम सब बच्चों से बात कर जाती
साथ रहती मेरे स्कूल से लौटने तक
अनुशासन युक्त बच्चे की तरह
शाम होते ही अपने घर लौट आती
अब नहीं दिखाई देती
मेरी प्यारी गौरैया चिड़िया
अब नहीं सुनाई देती
उसके चिचयाने की आवाज
हमारे साथ घरों में रहना
उसको अच्छा लगता था
लेकिन ! अब वह
पहले वाले घर कहाँ हैं ?
चुगती थी दाना
पंसारी की दुकानों से
फटके हुए अनाज के भूसे में से,
भर लेती थी पेट अपना
सुपर मार्केट और मॉल ने
छीन लिया निवाला उसका
मोबाइल टावर की तरंगों से
घट गई प्रजनन शक्ति
खाती थी बड़ी रुचि से
घास के बीज
अब दिखाई नहीं देती
शहरों में बीजन घास
सजे रहते हैं मखमली घास से
शहरों के बगीचे
नन्ही सी जान नहीं सह पा रही हैं
शहरों का बढ़ता तापमान
खेतों में डाले गए कीट नाशक ने भी
कुछ के ले लिए प्राण
अब घर आँगन सूना लगता है
सुनने को उसकी आवाज
जी ललकता है
अरे भाई ! कोई तो सुनो
उसकी पुकार
जीना चाहती है वह भी
बतियाना चाहती
हमारे तुम्हारे साथ ।
निशा नंदिनी गुप्ता
तिनसुकिया, असम