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9 Feb 2018 · 1 min read

नदी अश्क़ों के’ धारे हैं ।

अज़ब इंसाफ़ क़ुदरत का, बने हम दो किनारे हैं,
इधर हम हैं उधर तुम हो, नदी अश्क़ों के’ धारे हैं ।

इबादत में झुके हम हुस्न की रोया जहां छोड़ा ।
गया ले चाँद कोई हाथ में जलते सितारे हैं ।

ज़मी रोयी गगन रोया रहम उनको नहीं आया,
तमाशा देखते हँसकर खड़े अब लोग सारे हैं ।

ख़ुदा कैसा सितम ढाया जगाकर प्यार को दिल में,
मिलेगा चाँद पूनम में अमा से दिन गुज़ारे हैं ।

सदी बदलीं रहीं बदली किरण इक भी नहीं झिटकी,
करे ‘अंजान’ क्या बोलो, बरसते मेघ खारे हैं ।

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