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14 Dec 2020 · 1 min read

नज़र

वो बारहा राज़-ए-भरम खोलती थी
ज़ुबां से भी ज़्यादा नज़र बोलती थी।
समझता भला क्या नादान ये दिल
अदा ही ऐसी कि बसर डोलती थी।

2 Comments · 195 Views
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