नजरों में नजारों में — स्वप्न यही —- (मुक्तक)
मुक्तक (१)
नजरों में नजारो में,जीवन की बहारो में।
लाखो में हजारों में,तुझे तो मैंने पाया हे।
न जाना दूर तू मुझसे, कह रहा दिल मेरा तुझसे।
जी न पाऊंगा मै जानम,तुझे धड़कन में बसाया है।।
(२)
मिले हो जब से तुम मुझसे,जीना मुझको तो आया है।
क्या होते प्यार के रिश्ते,तुम्हीं ने मुझको सिखाया है।
निभाना साथ जीवन भर,लगे तुझको मेरी उमर।
हर जनम मिले तू ही,स्वप्न यही सजाया है।।
राजेश व्यास अनुनय