नकाब जुल्फ़ों का चेहरे पे डाल रक्खा है
आग़ाज़
आज की हासिल
ग़ज़ल
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निज़ाम कैसा खुदा ने सँभाल रक्खा है
उरूज है जो दिया तो जवाल रक्खा है
?
उसी का दर्द जिगर में तो पाल रक्खा है
के जिसने दिल से ही मुझको निकाल रक्खा है
?
बता के कैसे भुला दूँ तुम्हे ऐ मेरे सनम
अजीब सा है जो तुमने सवाल रक्खा है
?
बताओ कैसे वो दीदार करता दिवबर का
नकाब जुल्फों का चहरे पे डाल रक्खा है
?
वो तीरग़ी को भला किस तरह सहेगा जब
पकड़ के जिसने चरागे-
ए-मशाल रक्खा है
?
बता तो कैसे न “प्रीतम” हो तेरा दीवाना
सँवार करके जो हुस्न-ओ-जमाल रक्खा है
?
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
06/09/2017
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