नई सुबह, कुछ नया नही
नई सुवह घिर आयी है
नये एहसास में
सब वही है जो कल छोड़ा था
सिवाय इंसानी जज्बात में ।
वही सितारे वही काला अंतरिक्ष
हर रोज की तरह
हजारों सालों से रात के अंधेरे में निकले और खो गए
सुबह सूरज ने आधी दुनिया को छोड़कर
आधी दुनिया को केसरिया से रंग दिया ।
कुछ भी नया नही था
सिवाय इंसानी नियम के
जो चाहता है बांधना ब्रह्माण्ड को भी
चाहता है सूरज नया हो उसकी चमक नयी हो
क्योकि पुराने एहसानों को भूलना उसकी चाहत है ।
रात के घुप्प अँधेरे में
अचानक पटाखों की आवाज से
पक्षी पेड़ों से उड़ने लगे ठंड में दबे पंखों को खोलने लगे
धुंए के बड़े बड़े अम्बार बादल बनकर उड़ने लगे
फिर सुबह वही वहस और जवानी तलवार ।
कुछ नया नही था
सिवाय अमीरी- बदगुमानी के प्रदर्शन के
फिर सुबह वही जहरीला कोहरा सड़क पर अँधेरा
पुलिस की आगोस में कुछ दीवाने
और दीवानों की आगोस में नफ़रत पैगाम
फिर वही संकल्प विकल्पों का दौर
कुछ पल के लिए ही सही
इंसानो को इंसान बना ही देता है
पूरी दुनिया को एक कर ही देता है
नये जज्बात भर ही देता है
बन्द पड़े दिलों को धड़का ही देता है ।